Anuched on mitrata and vidyarthi ka dayatv.
Answers
Answer:
अध्ययन, चिंतन और मनन द्वारा विद्या अर्जित करना विद्यार्थी का दायित्व है। गुरुजनों का आज्ञाकारी बनना तथा विद्यालय अनुशासन में रहना विद्यार्थी का दायित्व है। धार्मिक संस्कारों को अपने हृदय में विकसित करना विद्यार्थी का दायित्व है। समाज और राष्ट्र के क्रियाकलापों से अवगत रहना विद्यार्थी का दायित्व है। समाज अथवा राज्य पर कोई भी संकट आने पर राष्ट्र रक्षा के लिए अपने को समर्पित करना विद्यार्थी का दायित्व है।
दायित्व का शाब्दिक अर्थ है जिम्मेवारी। दूसरे शब्दों में किसी कार्य की पूर्ति का भार। दायित्व के निर्वाह से शिक्षा मिलती है और बल की प्राप्ति होती है, जीवन का विकास होता है। मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं तो दायित्व का ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ प्रदर्शक बनता है।
विद्यार्थी अर्थात विद्या का अभिलाषी। विद्या प्राप्ति का इच्छुक। विद्या पढ़ने वाला विद्यार्थी कहलाता है इसलिए अपने नाम के अर्थ के अनुरूप उसका सर्व प्रथम दायित्व है विद्या ग्रहण करना।
विद्या ग्रहण के लिए चाहिए निरंतर ध्यान, चिंतन और मनन। अध्ययन ज्ञान का द्वार खोलता है, मस्तिष्क को परिष्कृत करता है तथा हृदय को सुसंस्कृत बनाता है। बेकन के शब्दों में अध्ययन आनंद, अलंकरण और योग्यता का काम करता है। चिंतन और मनन अध्ययन की परिचायिका हैं। इनके द्वारा ही विषय मानसिक माला में गुंथते हैं।
अध्ययन चिंतन तथा मनन के लिए नीति के चाणक्य ने विद्यार्थी को आठ बातें छोड़ने की सलाह दी है
कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादं श्रृंगारकौतुके।
अतिनिद्रातिसेवा च, विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत्।।
अर्थात काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, श्रंगार, तमाशे, अधिक निद्रा और अत्यधिक सेवा विद्यार्थी के लिए वर्जित है। विद्यार्थी के अनुशासन को स्वीकार करना विद्यार्थी का प्रमुख दायित्व है। इस दायित्व निर्वाह से विद्यालय का वातावरण अध्ययन अनुकूल बनेगा जो विद्यार्थी के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा, मन को परिष्कृत करेगा, प्रतिभा को योग्यता में परिणत करेगा, भावी जीवन की सफलता और उज्ज्वलता में सहायक होगा।
I HOPE IT HELP YOU...
please give thanks to all my answers