Hindi, asked by Shahbaz1773, 1 year ago

anuched on sikhsha ka badalta swarup

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Answered by NightFury
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 शिक्षक दिवस है, मतलब शिक्षा और शिक्षकों के योगदान और महत्व को समझने का दिन। पर आज जब शिक्षा का पूरा तंत्र एक बड़े व्यवसाय में तब्दील हो रहा है, क्या हम शिक्षा और शिक्षक की गरिमा को बरकरार रख पाए हैं? वास्तव में पूंजीवादी विश्व के बदलते स्वरूप और परिवेश में हम शिक्षा के सही उद्देश्य को ही नहीं समझ पा रहे है। सही बात तो यह है कि शिक्षा का सवाल जितना मानव की मुक्ति से जुड़ा है उतना किसी अन्य विषय या विचार से नहीं। एक बार देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्र्वविद्यालय मे भाषण देते हुए कहा था कि शिक्षा और मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। पर जब मुक्ति का अर्थ ही बेमानी हो जाए, उसका लक्ष्य सर्वजन हिताय की परिधि से हटकर घोर वैयक्तिक दायरे में सिमट जाए तो मानव-मन स्व के निहितार्थ ही क्रियाशील हो उठता है और समाज में करुणा की जगह क्रूरता, सहयोग की जगह दुराव, प्रेम की जगह राग-द्वेष व प्रतियोगिता की भावना ले लेती है।

इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का तेजी से ह्रास होता जा रहा है, समाज में सहिष्णुता की भावना लगातार कमजोर पड़ती जा रही है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है। डॉ. राधाकृष्णन का पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। वह शिक्षा में मानव के मुक्ति के पक्षधर थे। वह कहा करते थे कि मात्र जानकारियां देना शिक्षा नहीं है। करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। शिक्षा की दिशा में हमारी सोच अब इतना व्यावसायिक और संकीर्ण हो गई है कि हम सिर्फ उसी शिक्षा की मूल्यवत्ता पर भरोसा करते हैं और महत्व देते हैं जो हमारे सुख-सुविधा का साधन जुटाने में हमारी मदद कर सके, बाकी चिंतन को हम ताक पर रखकर चलने लगे हैं। देश में बी.एड. महाविद्यालयों को खोलने को लेकर जिस तरह से राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद धड़ल्ले से स्वीकृति प्रदान कर रहा है, वह एक दुखद गाथा है। प्राय: सभी महाविद्यालय मापदंडों की अवहेलना करते हैं। 

Answered by Anonymous
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Answer:

शिक्षा का स्वरुप बिगड़ गया है पहले शिक्षा का रूप कुछ और था और आज कुछ और हो गया है शिक्षा का वास्तविक अर्थ सीखना होता है। भारत में वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे सन १८३५ में लागू किया गया. आज शिक्षा के मायने बदल गए हैं शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है।

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