anuched on swasth jeevan ka rajyog
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स्वास्थ्य ही जीवन है
यदि हम स्वस्थ हैं तो हम एक साधारण भारत के नागरिक भी है । यदि हम अस्वस्थ हैं तो गरीब , अयोग्य और उपेक्षित भी है । किसी देश, जाति, समाज तथा सम्प्रदाय की उन्नति तभी संभव है जबकि वे स्वस्थ और स्फूर्त है ।
संसार के इतिहास को उठाकर इस बात का अध्ययन करें कि कौन-सा देश कब उन्नतिशील, स्मृद्धिशाली, सभ्य तथा सुसंस्कृत रहा, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कोई भी देश तभी श्रेष्ठ रहा जबकि उसके नागरिक स्वस्थ रहें । विश्व स्वास्थ्य सगंठन की विभिन्न रिपोर्टों से भी यह सिद्ध हो रहा है ।
वास्तव में जीने का उद्देश्य स्वस्थ रहने से है । अस्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वयं दुखी, रोगी और उपेक्षित रहते हैं अपितु वह सारे समाज तथा विश्व के लिए भार हैं । उससे सभी की प्रगति रुक जाती है या उनकी प्रगति में रुकावटें पैदा होती हैं । वस्तुतया स्वस्थ व्यक्ति या समाज का जागरूक एवं उपयोगी है ।
”तन चंगा तो मन चंगा”: यह एक बहुत ही पुरानी लोकोक्ति है । अंग्रेजी में भी एक कहावत है जिसका अर्थ हैं: स्वास्थ ही धन है । वास्तव में जिसका स्वास्थ्य अच्छा है, वह भाग्यशाली है । यदि किसी के पास अपार धन है, परन्तु वह अस्वस्थ है, तो वह जीवन का आनन्द नहीं उठा सकता ।
इसी प्रकार यदि किसी के पास विद्या है, परन्तु वह रोगी है, तो उसका जीवन व्यर्थ है । वास्तव में, स्वास्थ्य ही जीवन है । ”पहला सुख नीरोगी काया” यह लोकोक्ति समीचीन है । काया में कोई रोग नहीं तो हम सुखी है, और यदि रोग है तो दुखी हैं । तभी कहा गया है कि स्वास्थ्य सुख की कुंजी है ।
स्वस्थ रहने की पहली शर्त है ताजा हवा और शुद्ध पानी । हर पल हम साँस लेते और छोड़ते हैं । साँस लेने का मतलब है, हम हवा ग्रहण करते और साँस छोड़ने का मतलब है कि हम अपने शरीर से गंदी हवा बाहर निकालते हैं । आखिर जीवन है क्या ? यह साँसों का आना-जाना ही तो जीवन है । गाँव में ताजा हवा मिलती है ।
परन्तु गंदगी के कारण यह दूषित हो जाती है । गाँव के चारों और पूरे पड़े रहते हैं । जगह-जगह कूड़े-करकट के ढेर लगे रहते हैं । लोग गाँव के आस-पास ही निशा-पानी के लिए बैठ जाते हैं । इससे गंदगी फैलती है और बदबू के मारे सिर-भन्ना जाता है । कूड़े-करकट और घर के सामने गंदा पानी भरा या फैला रहने के कारण मक्खी-मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं ।
जरा सोचिए ऐसी हालत में कैसे स्वस्थ रहा जा सकता है । यदि गाँव को साफ-सुथरा रखा जाए तो वहाँ के निवासी ताजा हवा के लिए तरसेंगे नहीं और बेहतर स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे । गाँव में पीने के पानी की भारी समस्या है । कच्चे कुएँ का पानी हानिकर होता है । पोखर और तालाबों के पानी से अनेक प्रकार की बीमारियाँ लग जाती है । प्राय: पोखर और तालाब कच्चे होते हैं ।
पक्के भी हों तो क्या ? सारा गाँव उन्हीं में नहाता धोता हैं इससे तालाब का पानी और खराब हो जाता है । जहाँ पीने के पानी के लाले पड़े रहते हैं । वहाँ वैसे भी नहाने-धोने का प्रश्न ही नहीं उठाता । ठीक तरह से नहाने से और गंदे कपड़ों को न धोने से अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं । बहुत से लोग तो कपड़े सिलवाने के बाद उन्हें धोने का नाम ही नहीं लेते ।
फिर नीरोगी काया में चन्दन-बास की बात कैसे सिद्ध हो ? यह तो हुई गाँव की बात । शहर में तो न ताजा हवा है और न शुद्ध पानी । वहाँ का वातावरण मिल और कारखानों के धुएँ से दूषित हो गया है । धुएँ में कार्बन-डाईऑक्साइड होता है, तो स्वास्थ्य का शत्रु है ।
कार्बन-डाईऑक्साइड एक तरह की गन्दी हवा है जिसे हम बराबर अपने शरीर से छोड़ते रहते हैं । दूसरे शहर घनी आबादी के कारण भी गंदे हो जाते हैं । क्योंकि रोजाना सफाई करने के बावजूद भी गंदगी के ढेर चारों ओर लगे रहते हैं । सुबह-सुबह आप शहर के गली-कूचों में घूमे तो आपकों साक्षात नरक के दर्शन हो जाएगें ।
पानी शहर में नलों से मिलता है, परंतु ठीक तरह साफ न होने के कारण वह शुद्ध नही रहता । कहीं-कहीं नदी के पानी को साफ करके नलों द्वारा जनता तक पहुँचाया जाता है । परन्तु नदियों का पानी इतना दूषित हो गया है कि उसे ठीक से साफ करना वाटर-वर्कस द्वारा संभव नहीं रहा है ।
शहर की सारी गंदगी समेटकर नाले-नदी में गिरते हैं । कल-कारखानों में इस्तेमाल करके जो पानी छोड़ा जाता है, वह न केवल दूषित होता है, विषैला भी होता है । वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ समय बाद शहर का अर्थ होगा मौत का घर ।
इस परिश्रम की थकान को मिटाने के लिए तथा मन की थकान को मिटाने के लिए तथा मन को प्रसन्न रखने के लिए उनके लिए भी खेल बहुत आवश्यक है, हाँ पढे-लिखे शहरी लोगों के लिए नियमित व्यायाम का अवसर नहीं मिलता है । उनके जीवन में भागमभाग बनी रहती है । इस कारण वे अस्वस्थ रहते हैं ओर सदा ही दवाएँ गटकते रहते हैं ।
व्यायाम करने से शरीर का अंग-अंग खुल जाता है । पसीने के जरिए शरीर की गंदगी निकल जाती है । खून का दौरा तेज हो जाता है । खाया-पिया पच जाता है । चेहरा खिल जाता है । और मन-उमंग से नाच उठता है । तभी कहा है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है ।
बच्चों के लिए खेलना सबसे उत्तम व्यायाम है । खेलने से शरीर बढ़ता है, हड्डियां मजबूत होती है, भूख बढ़ती हैं, भोजन पचता है, और मन प्रसन्न रहता है । काम में रुचि पैदा होती है । पढ़ाई में मन लगता है । अच्छी नींद आती है । थकान और सुस्ती कभी पास नहीं फटकती ।
शरीर में हरदम फुर्ती बनी रहती है । मन प्रफुल्ल रहता है और सदा उत्साह बना रहता है । सारा संसार खुश और महकता नजर आता है । अच्छे काम करने से भी मन स्वस्थ रहता है । बुरे काम करने से मन भी दुखी रहता है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने तन-मन को स्वस्थ रखना चाहिए, तभी हम जीवन का आनन्द ले सकेंगे और जीवन का अर्थ समझ सकेंगे । जो स्वस्थ हैं वह सुखी है और जो सुखी हैं वह जीवित है । जीवित होने की यही एक पहचान है । तन और मन से जो स्वस्थ है वहीं श्रेष्ठ हैं (स्वस्थ जीवन ही सफलता की कुंजी है ।