Hindi, asked by puranchand94, 9 months ago

anuched Vidyarthi aur anushasan only in two paragraphs in hindi please answer fast tomorrow is exam​

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Answered by grewalSaab
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Answer:

अनुशासन मानव जीवन को सामाजिक नियमों से बाँधता है। मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नियमों का पालन करना पड़ता है। पढ़ाई, खेल, मेल-मिलाप, क्लब इत्यादि सभी जगह के कुछ नियम हैं। इन्हीं नियमों में रहकर कार्य करना अनुशासन है।

विद्यार्थी समाज की नई पीढ़ी है। यही आगे चलकर देश के आकाश में तारों की तरह प्रकाशवान होंगे। अनुशासनहीन छात्र समाज की बुराइयों का शिकार हो जाता है। बड़ों का निरादर, अध्यापकों की बात न मानना, समय पर कार्य न करना, खेलते समय मित्रों से झगड़ना और अपने छोटे भाई-बहन से अपनी खेल वस्तुएँ न बाँटना, ये अनुशासित बच्चों के लक्षण नहीं हैं।

परिवार अनुशासन की पहली नींव रखता है। परिवार का अच्छा आचरण स्वयं ही बच्चों के अंदर आ जाता है। विद्यालय में भी बच्चों को मानसिक व शारीरिक विकास के अवसरों द्वारा अनुशापित बनाया जाता है।

अनुशासित छात्र समाज व देश के लिए उपयोगी बन उन्नति में सहायक होते हैं अनुशासन बाहरी नियंत्रण से कम और आत्मनियंत्रण से अधिक आता है। अनुशासन अपनी गंदी आदतों को दूर कर अच्छी आदतों को अपनाना है।

निबंध नंबर :- 02

विद्यार्थी और अनुशासन

Vidyarthi aur Anushasan

भूमिका- नियमवद्ध और नियन्त्रण में रहकर कार्य करना अनुशासन कहलाता है। अनुशासन मानवजीवन का। महत्त्वपूर्ण अंग है। सूर्य का अस्त होना, ऋतुओं का परिवर्तन इस तथ्य के प्रमाण हैं। कोई भी जब अनुशासनहीन जाता है तो अव्यवस्था फैलती है। प्रत्येक व्यक्ति अनुशासन में रहकर ही समाज के लिए उपयोगी हो सकता है। थियों में अनुशासन का होना बहुत जरूरी है क्योंकि उन्होंने आगे चलकर देश की बागडोर सम्भालनी है। शासन विद्यार्थी जीवन की सफलता की कुंजी है।

अनुशासन का महत्त्व- बिना अनुशासन के विद्यार्थी जीवन का निर्माण नहीं कर सकता। जा विद्यार्थी अनुशासन में नहीं रहता उसे असफलता का मुँह देखना पड़ता है। जिस सेना में अव्यवस्था हो वह सेना भी देश की रक्षा करने में असफल हो जाती है। जिस कारखाने में मजदूर अनुशासनहीन हो जाते हैं, वह शीघ्र ही अवनति के गड्डे में गिर जाता है।

आज की स्थिति- प्राचीनकाल में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वहाँ का वातावरण बडा अनुशासित होता था। विद्यार्थी अपने गुरुओं का पूरा सम्मान करते थे। वहाँ अमीर-गरीब, ऊँच-नीच का भेदभाव न था। सभी विद्यार्थी इकट्ठे होकर एक ही गुरू के पास विद्या ग्रहण करते थे। भगवान् कृष्ण और सुदामा ने सदीपन ऋषि के आश्रम में इकट्ठे ही विद्या ग्रहण की। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन के बिना सफल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज भारत में जीवन के प्रत्येक पहलू में अनुशासनहीनता दृष्टिगोचर हो रही है। विद्यार्थी की रुचि पढ़ाई की ओर नहीं। कभी एक विश्वविद्यालय में तो कभी दूसरे विश्वविद्यालय, कभी एक परीक्षा केन्द्र में तो कभी दूसरे परीक्षा केन्द्र में हड़ताल, मारपीट आदि समाचार प्रतिदिन का विषय बने हुए हैं। अपनों से बड़ोंका आदर करना, उनका कहा मानना तो विद्यार्थी भूलता ही जा रहा है। शारीरिक दण्ड न होने के कारण अनुशासनहीनता बढ़ती ही जा रही है। परीक्षाएं तो आजकल अध्यापकों के लिए सिर दर्द बन गई हैं। नकल करना विद्यार्थी अपना अधिकार समझते हैं।

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