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परोपकार की यह शिक्षा हमें प्रकृति से मिली है। प्रकृति के प्रत्येक कार्य में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई पड़ती है। नदियां अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों की प्यास बुझाती हैं, वृक्ष अपने फलों को दूसरों के लिए अर्पण करते हैं, बादल पानी बरसा कर धरती की प्यास बुझाते हैं।
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परोपकार का महत्व – परोपकार अर्थात् दूसरों के काम आना इस सृष्टि के लिए अनिवार्य है | वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लियेफल धारण करते हैं | नदियाँ भी पाना जल स्वयं नहीं पीतीं | परोपकारी मनुष्य संपति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं | साडी प्रकुर्ती निस्वार्थ समपर्ण का संदेश देती है | सूरज आता है, रोशनी देकर चला जाता है | चंद्रमा भी हमसे कुछ नहीं लेता, केवल देता ही देता है | कविवर पंत के शब्दों में –
हँसमुख प्रसून सिखलातेपलभर है, जो हँस पाओ |अपने उर की सौरभ से जग का आँगन भर जाओ ||
परोपकार से प्राप्त आलौकिक सुख – परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है | जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी छायल की सेवा करता है तो उस क्षण उसे पाने देवत्व के दर्शन होते हैं | वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है | वह दिव्य सुख प्राप्त करता है | उस सुख की तुलना में धन-दौलत कुछ भी नहीं है |
परोपकार के विविध उदाहरन – भारत में परोपकारी महापुरषों की कमी नहीं है | यहाँ दधीची जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपने जाति के लिए अपने शरीरी की हड्डियाँ दान में दे दीं | यहाँ सुभाष जैसे महँ नेता हुए जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना तन-मन-धन और सरकारी नौकरी छोड़ दी | बुद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं |
परोपकार में ही जीवन की सार्थकता – परोपकार दिखने में घाटे का सौदा लगता है | परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है | महात्मा गाँधी को परोपकार करने से जो गौरव और समान मिला ; भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ने से जो आदर मिला ; बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली, क्या वह एक भोगी राजा बन्ने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं | परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है | उसे पश्चाताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती | परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है | उसके जीवन की सुगंध सब और व्याप्त हो जाती है | अतः मनुष्य को चाहिए की वह परोपकार को जीवन में धारण करें | यही हमारा धर्म है |
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