anupras alankar ke 10 udharan
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hey dear.....here is your answer.....
(क) दिनान्त था थे दिननाथ डूबते ।
सधेनु आते गृह ग्वाल-बाल थे ।। (‘दन’ तथा ‘ल’ की आवृत्ति)
(ख) मुदित महीपति मंदिर आए । सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।
(‘म’ तथा ‘स’ की आवृत्ति)
सबै सहायक सबल कै, कोउ न निबल सहाय ।
पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय ।
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर ।
समय पाय तरुवर फलैं, केतक सींचौ नीर ।
(ड) बड़ सुख सार पाओल तुआ तीरे ।
छोडइत निकट नयन बह नीरे ।
(च) जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी ।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना ।
(छ) प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरे दिन राती ।
(ज) माधव कत तोर करब। बड़ाई ।
उपमा तोहर कहब ककरा हम, कहितहुँ अधिक लजाई ।
(झ) जय जय भारत-भूमि-भवानी !
अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी ।
(ज) फूली सरसों ने दिया रंग, मधु लेकर आ पहुँचा, अनंग,
वधू-वसुधा पुलकित अंग अंग, हैं वीर वेश में किन्तु कंत ।
hope it help u......
happy Father's day....
(क) दिनान्त था थे दिननाथ डूबते ।
सधेनु आते गृह ग्वाल-बाल थे ।। (‘दन’ तथा ‘ल’ की आवृत्ति)
(ख) मुदित महीपति मंदिर आए । सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।
(‘म’ तथा ‘स’ की आवृत्ति)
सबै सहायक सबल कै, कोउ न निबल सहाय ।
पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय ।
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर ।
समय पाय तरुवर फलैं, केतक सींचौ नीर ।
(ड) बड़ सुख सार पाओल तुआ तीरे ।
छोडइत निकट नयन बह नीरे ।
(च) जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी ।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना ।
(छ) प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरे दिन राती ।
(ज) माधव कत तोर करब। बड़ाई ।
उपमा तोहर कहब ककरा हम, कहितहुँ अधिक लजाई ।
(झ) जय जय भारत-भूमि-भवानी !
अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी ।
(ज) फूली सरसों ने दिया रंग, मधु लेकर आ पहुँचा, अनंग,
वधू-वसुधा पुलकित अंग अंग, हैं वीर वेश में किन्तु कंत ।
hope it help u......
happy Father's day....
lovelypiku:
billu.....
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