anushad on mere Jeevan ki abilasha
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कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता के माध्यम से राष्ट्र पर प्राण निछावर करने की अभिलाषा प्रकट की है । जिस प्रकार समुद्र में अनेक लहरें उठती और विलीन होती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के मन में तरह-तरह की इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं ।
संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो जिस की कोई अभिलाषा न हो । कोई यश चाहता है, कोई धन । कोई नेता बनने की इच्छा रखता है तो कोई लेखक बनने की । कोई सिनेमा कलाकार बनना चाहता है । कोई डाक्टर, इंजीनियर, व्यापारी बनकर अपार धन और यश को अर्जित करना चाहता है । कोई सैनिक बनकर महान् योद्धा बनना चाहता है ।
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संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो जिस की कोई अभिलाषा न हो । कोई यश चाहता है, कोई धन । कोई नेता बनने की इच्छा रखता है तो कोई लेखक बनने की । कोई सिनेमा कलाकार बनना चाहता है । कोई डाक्टर, इंजीनियर, व्यापारी बनकर अपार धन और यश को अर्जित करना चाहता है । कोई सैनिक बनकर महान् योद्धा बनना चाहता है ।
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you con write this if you want to be scientist and plz check spelling mistakes
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