Hindi, asked by vickeykumar41, 1 year ago

anyone can write about seva and samarpan in hinfi 1000 word

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Answered by mchatterjee
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सेवा ,आदर ,सत्कार भाव यह सब है तो हम सब का नीति भाई। मानव होकर एक मानव की मदद करना है हमारा समर्पण।

गरीब की मदद करना, बच्चों की सहायता करना। भूखे लोगों का पेट भरना यह सेवा भाव है।

चिकित्सा के क्षेत्र में होकर गरीबों की मुफ्त चिकित्सा भी एक सेवा भाव है। समाज के रक्षक के रूप में मदद करना हमारा कर्तव्य है।

Answered by MavisRee
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सेवा और समर्पण :

"ग्राम- ग्राम में ,भरे खलिहान में कृषकों के गान में तू  बसता है I

सेवा के भाव में भक्ति की चाव में शक्ति की राह में तू हंसता है II

श्री राधिका रमण प्रसाद सिंह ने लिखा है Iराजा के आँखों में नींद नहीं, वो सर दर्द से बेचैन हैं हर जगह पूजा अर्चना की, कई मंदिरों में दर्शन किये चढ़ावा चढ़ाया प्रसाद मिले I लेकिन राजा की वेदना कम नहीं हुई सर दर्द के मारे वो मुकुट नहीं धारण कर सकते थे Iराजा को किसी ने बताया जाओ  गरीबों के बीच जाओ कंगालों के बीच जाओ जहाँ अनेक रोगी लाचार बीमार भूखे और नंगे बसते हैं Iराजा ने उनका पता पूछना चाहा I उसने दिखाया दूर उस गरीब बस्ती में मैं रहता हूँ I सुबह होते ही राजा उनसे मिलने जाते हैं I उसे देखते ही राजा आश्चर्य से भर उठते हैं I

अरे! ये तो वहीँ हैं जिन्होंने मुझे कल जंगलों के बीच जाने को कहा था Iराजा ने कहा हे संत मुझे नींद नहीं आती ,उन्होंने  हंस कर कहा "ताज के तले नींद ?ये तभी मुमकिन है जब ताज के तले त्याग हो I"तुम्हारे मन का अवसाद नहीं मिटा है प्रसाद तो बहुत मिला I अरे कंगाल ही कल के युग का अवतार है जाओ उन्हें भोजन कराओ I राजा ने सभी  गरीबों को बुलवाया ,कम्बल दान किये I सबों को खाना खिलाया राजा खुद उनकी थाल लगाने गए Iजैसे ही पहली थाल उन्होंने अर्पित की ,और नज़र पड़ी तो देखा अरे !ये तो वही संत हैं जो कि गरीब की बस्ती में रहते हैं I  दूसरा भी वही,तीसरा भी वही जब हजारवां व्यक्ति था वो भी वही Iबस राजा ने मुकुट उतार दिया उनके चरणों पर रख दिया और शाष्टांग होकर गिर पड़े I कहा: "त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पयेI " वो मुस्कुराया पूछा सर दर्द कैसा है Iराजा ने कहा जरा भी नहीं है तो कंगाल की सेवा करो ,गरीबों की सेवा करो वहीँ तो भगवान् हैं I


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