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‘अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों’ मात्र यह पांच शब्द और स्वामी विवेकानद भारत को अध्यात्मिक तौर पर विश्व विजयी बना देते हैं. 11 ,सितम्बर ,1893 को अमेरिका के शहर शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा का उद्घाटन होना था , उसके एक दिन पहले (10 सितम्बर 1893 ) तक स्वामी विवेकानंद को अमेरिका में रहने, खाने और ठण्ड के दिनों में पर्याप्त कपड़े नहीं होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ा था, इतना ही नहीं स्वामीजी को रंग भेद का भी सामना करना पड़ा था . कोई उन्हें ब्लैक कहता था तो कोई नीग्रो.
लेकिन जब वह 11 ,सितम्बर को विश्व धर्म महासभा में स्वागत का उत्तर देने के लिए खड़े हुए और उन्होंने ‘अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों’ से अपना वक्तव्य शुरू किया तो उनके सामने बैठे विश्वभर से आये लगभग 7 हज़ार लोग दो मिनट से ज्यादा समय तक तालियां बजाते रहते है. अगर स्वामीजी के शब्दों में बताऊं तो दो मिनट तक ऐसी घोर करतल – ध्वनि हुई कि कान में अंगुली देने के बाद भी तालियों की गड़गड़ाहट की आवाज कम नहीं हो रहीं थीं. यह ताली उस संन्यासी के लिए बज रही थी, जो एक गुलाम देश से आया था, जो प्रसिद्ध होने के लिए नहीं अपने देश के विचार और दर्शन को विश्व के सामने प्रस्तुत करने आया था.