अपंग चंद्रा को डॉ. चंद्रा बनाने में उसकी माता का क्या योगदान है?
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डॉ. चन्द्रा जब डेढ़ साल की थी, तो उसे पोलियो हो गया था। गर्दन के नीचे सारा शरीर निर्जीव हो गया था। उस दशा में उसकी माताजी ने ईश्वर से यही प्रार्थना की कि बेटी का जीवन बचा रहे। उसने काफी परिश्रम किया, बेटी का इलाज अनेक डॉक्टरों से करवाया, उसके साथ स्कूल में हर समय रही। घर पर भी हर तरह से बेटी की सुखसुविधा का ध्यान रखा। डॉ. चन्द्रा को अनेक पदक मिले, डॉक्टरेट की उपाधि मिली। इन सब कामों में उसकी माताजी छाया की तरह उसके साथ रही। उसने कभी भी अपंग बेटी का दिल नहीं दुखाया। इस प्रकार चन्द्रों की माताजी ने सहृदयता एवं ममता रखने में कोई कमी नहीं रखी। उसके लिए उक्त कथन पूरी तरह उचित कहा गया है।
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