Hindi, asked by nikitakumari6296, 3 days ago

अपूर्व अनुभव eska moral

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Answered by siddhipatil128
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Answer:

सभागार में शिविर लगने के दो दिन बाद तोत्तो-चान के लिए एक बड़ा साहस करने का दिन आया. इस दिन उसे यासुकी-चान से मिलना था. इस भेद का पता न तो तोत्तो-चान के माता-पिता को था, न ही यासुकी – चान के. उसने यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता दिया था.

तोमोए में हरेक बच्चा बाग के एक-एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था. तोत्तो-चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जानेवाली सड़क के पास था.

बड़ा सा पेड़ था उसका, चढ़ने जाओ तो पैर फिसल-फिसल जाते. पर, ठीक से चढ़ने पर ज़मीन से कोई छह फुट की ऊँचाई पर एक द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था.

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