अपूर्व अनुभव पाठ में से आपको क्या सीख मिलती है
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यासुकी-चान को पोलियो था, इसलिए वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। जबकि जापान के शहर तोमोए में हर एक बच्चे का एक निजी पेड़ था। तोत्तो-चान जानती थी कि यासुकी-चान आम बालक की तरह पेड़ पर चढ़ने के लिए इच्छुक है। अत: उसकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए तोत्तो-चान ने यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया।तोत्तो-चान का अनुभव – तोत्तो-चान स्वयं तो रोज ही अपने निजी पेड़ पर चढ़ती थी और खुश होती थी परंतु आज पोलियो से ग्रस्त अपने मित्र यासुकी-चान को पेड़ की द्विशाखा तक पहुँचाने से उसे प्रसन्नता के साथ-साथ अपूर्व आत्म संतुष्टि भी प्राप्त हुई।
यासुकी-चान का अनुभव – यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई उसकी मन की इच्छा पूरी हो गई। उसने पेड़ पर चढ़कर दुनिया को निहारा।सूरज का ताप उन पर तब पड़ रहा था। जब तोत्तो-चान और यासुकी-चान एक तिपाई-सीढ़ी के द्वारा पेड़ की द्विशाखा तक पहुँच रहे थे।
बादल का टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था। जब तोत्तो-चान अपनी पूरी ताकत से यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींच रही थी।
इस प्रकार परिस्थिति बदलने का कारण मेरे अनुसार दोनों मित्रों के प्रति प्रकृति की सहृदयता थी। प्रकृति भी चाहती थी कि दोनों बच्चे अपने-अपने प्रयास में सफल हो।लेखिका ने ऐसा इसलिए लिखा होगा क्योंकि एक तो
यासुकी-चान पोलियो से पीड़ित था और वह स्वयं पेड़ पर चढ़ने में असमर्थ था। दूसरा तोत्तो-चान बहुत जोखिम उठा कर अपने माता-पिता को बिना बताए उसे पेड़ पर चढ़ा पाई थी परन्तु शायद वह दोबारा ऐसा कभी ना कर पाएँ।हम कुछ ऐसे कार्यों के लिए कठिन परिश्रम और बुद्धि का प्रयोग करेंगे जिसमें हम किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकें।