अपना अपना भाग्य कहानी में कौन सा पात्र संवेदनहीनता का शिकार होते हुए दिखाई पड़ता है
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जैनेन्द्र कुमार का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है। जैनेन्द्र पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने हिन्दी गद्य को मनोवैज्ञानिक गहराइयों से जोड़ा। जिस समय प्रेमचन्द सामाजिक पृष्ठभूमि के उपन्यास और कहानियाँ लिख कर जनता को जीवन की सच्चाइयों से जोड़ने के काम में महारथ सिद्ध कर रहे थे, जब हिन्दी गद्य ‘प्रेमचन्द युग’ के नाम से जाना जा रहा था, तब उस नयी लहर के मध्य एक बिल्कुल नयी धारा प्रारम्भ करना सरल कार्य नहीं था। आलोचकों और पाठकों की प्रतिक्रिया की चिन्ता किये बिना, कहानी और उपन्यास लिखना जैनेन्द्र के लिये कितना कठिन रहा होगा, इसका अनुमान किया जा सकता है। बहुत से आलोचकों ने जैनेन्द्र के साहित्य के व्यक्तिनिष्ठ वातावरण और स्वतंत्र मानसिकता वाली नायिकाओं की आलोचना भी की परंतु व्यक्ति को रूढ़ियों, प्रचलित मान्यताओं और प्रतिष्ठित संबंधों से हट कर देखने और दिखाने के संकल्प से जैनेन्द्र विचलित नहीं हुए। जीवन और व्यक्ति को बँधी लकीरों के बीच से हटा कर देखने वाले जैनेन्द्र के साहित्य ने हिन्दी साहित्य को नयी दिशा दी जिस पर बाद में हमें अज्ञेय चलते हुए दिखाई देते हैं।
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read and understand...