Hindi, asked by mrperfect25, 11 months ago

अपने बिछड़े हुवे दोस्त के लिए एक आत्म कहानी लिखिए । ​

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Answered by pranav7455
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Answered by Anonymous
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अड़ोस-पड़ोस की दोस्ती -

अड़ोस-पड़ोस की दोस्ती - भर गर्मी में घर की छत पर साड़ी या दुपट्टे की छांह में रोटा-पानी करती नजर आती है तो कभी संकरी-सी मोहल्ले की गली में साइकल को स्टम्प बना दिल को क्लीनबोल्ड कर जाती है ये दोस्ती। बड़े होते हाथों में छोटी-सी कटोरी थाम चीनी या अचार की गरज से कभी पड़ोस का दरवाजा खटखटाती तो कभी किसी एक बहन की शादी में भागदौड़ करते तमाम अंकलों, आंटियों, दीदीयों, भाभियों और भैयाओं के चेहरे पर झांक जाती है ये दोस्ती। गरज ये कि किसी एक छत पर सूखता अमचूर पर जिस तरह मोहल्ले के हर बच्चे का हक है... बस इसी तरह इस दोस्ती पर भी किसी एक का अधिकार नहीं है।

अड़ोस-पड़ोस की दोस्ती - भर गर्मी में घर की छत पर साड़ी या दुपट्टे की छांह में रोटा-पानी करती नजर आती है तो कभी संकरी-सी मोहल्ले की गली में साइकल को स्टम्प बना दिल को क्लीनबोल्ड कर जाती है ये दोस्ती। बड़े होते हाथों में छोटी-सी कटोरी थाम चीनी या अचार की गरज से कभी पड़ोस का दरवाजा खटखटाती तो कभी किसी एक बहन की शादी में भागदौड़ करते तमाम अंकलों, आंटियों, दीदीयों, भाभियों और भैयाओं के चेहरे पर झांक जाती है ये दोस्ती। गरज ये कि किसी एक छत पर सूखता अमचूर पर जिस तरह मोहल्ले के हर बच्चे का हक है... बस इसी तरह इस दोस्ती पर भी किसी एक का अधिकार नहीं है।

अड़ोस-पड़ोस की दोस्ती - भर गर्मी में घर की छत पर साड़ी या दुपट्टे की छांह में रोटा-पानी करती नजर आती है तो कभी संकरी-सी मोहल्ले की गली में साइकल को स्टम्प बना दिल को क्लीनबोल्ड कर जाती है ये दोस्ती। बड़े होते हाथों में छोटी-सी कटोरी थाम चीनी या अचार की गरज से कभी पड़ोस का दरवाजा खटखटाती तो कभी किसी एक बहन की शादी में भागदौड़ करते तमाम अंकलों, आंटियों, दीदीयों, भाभियों और भैयाओं के चेहरे पर झांक जाती है ये दोस्ती। गरज ये कि किसी एक छत पर सूखता अमचूर पर जिस तरह मोहल्ले के हर बच्चे का हक है... बस इसी तरह इस दोस्ती पर भी किसी एक का अधिकार नहीं है। कंचों के अंदर गुंथी हुई रंग-बिरंगी दुनिया से लेकर फेसबुक तक और टिफिन से लेकर एक्जाम के 'आईएमपी' क्वेशचन्स के बंटवारे तक... दोस्ती न किसी नियम में बंधती है, न ही कायदे में। वो दोस्ती ही क्या, जहां सरहदें रुकावट बन जाएं या भाषा और मजहब आड़े आ जाएं। इसलिए तो दोस्ती का न कोई और पर्यायवाची है, न होगा, जो है वो बस शब्दों में ही सीमित है और दोस्ती की दुनिया तो शब्दों से कहीं बड़ी, फैली और अंतहीन है।

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