अपने बालपन में की गई शरारतों के बारे में लिखिए, आपको उनसे क्या शिक्षा मिली
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मेरा बचपन तो शरारतों का पिटारा है और पिटाई की कहानियों से पटा पड़ा है। शरारतों का आलम यह कि मेरी शरारतों के चलते पौने दो वर्ष छोटा भाई भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिस जाता था।
शरारती तो मैं बहुत बचपन से ही हूँ। मुझे खुद तो याद नही परंतु मेरी माँ बताती हैं कि मैं एक बार अपने दूधमुंहे भाई को लहसुन खिला रहा था। बाबू लसुन खा… मेरी माँ सोच रही थीं कि मैं अपने भाई के साथ खेल रहा हूँ। किस्मत से उन्होंने आ कर देख लिया और मैं अपने भाई के मुँह में 4–5 लहसुन की कलियाँ भरे बैठा था, और ठूसने की कोशिश में।
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शुरुआत में स्कूल नहीं अच्छा लगा पर बाद में ढेर सारे दोस्त बने और स्कूल जाना भी अच्छा लगने लग गया . छोटी-छोटी शरारतें जैसे किसी टीचर का मज़ाक बनाना और उनके पीरियड में हंसी रोके रखना या फिर धीर-धीरे खी-खी करके देर तक हँसते रहना. एक-दुसरे का टिफ़िन बिना-पूछे खा लेना और मेरा टिफ़िन कोई बिना पूछे खाये तो जमकर लड़ लेना.
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