अपनी बेटी की बुझी हुई चिता को देखकर सुखिया के पिता के मन में क्या भाव पैदा हुए
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किसी ने कहा कि उस पापी ने मंदिर में घुसकर बड़ा भारी अनर्थ कर दिया और मंदिर को अशुद्ध कर दिया। सुखिया के पिता ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता था कि माता की महिमा के आगे उसकी कलुषता अधिक भारी हो।
सुखिया के पिता ने आगे कहा कि यदि वे लोग उसकी अशुद्धता को माता की महिमा से भी ऊँचा मानते हैं तो वे माता को नीचा दिखा रहे हैं। लेकिन उसकी बातों का किसी पर कोई असर नहीं हुआ। लोगों ने उसे घेर लिया और उसपर घूँसों और लातों की बरसात होने
उसके हाथों से प्रसाद बिखर गया। वह दुखी हो गया क्योंकि अब उसकी बेटी तक प्रसाद नहीं पहुँचने वाला था। लोग उसे न्यायलय ले गये। उसे सात दिन जेल की सजा सुनाई गई। उसे लगा कि अवश्य ही उससे देवी का अपमान हो गया है।
सुखिया के पिता ने सिर झुकाकर उस दंड को स्वीकार कर लिया। उसके पास अपनी सफाई में कहने को कुछ नहीं था। जेल के वे सात दिन ऐसे थे जैसे सदियाँ बीत गईं हों। उसकी आँखें अनवरत बरसने के बाद भी सूखी थीं