अपने बचपन की 10 बातें याद कीजिए और उन्हें अपने शब्दों में लिखिए
Answers
कुछ अपने मन से भी लिख सकते हैं ।
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Explanation:
सपने सुहाने लड़कपन के
छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।
जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?
जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।
कभी हंसी, कभी आंसू
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।
वो पापा का साइकल पर घुमाना
हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां
शिक्षा-दीक्षा
पहले बचपन में बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पट्टी-पेम पर हुआ करती थी। वे पट्टी पर लिख-लिखकर याद करते व मिटाते थे। एक बार गलती होने पर मिटा व सुधारकर फिर से बच्चे को लिखना व पढ़ना सिखाया जाता था। बच्चा इससे सहजता व सरलता से पढ़ना-लिखना सीख जाता था तथा वह माता-पिता को भी कई बार 'पढ़ा' दिया करता था।
साइकलिंग
थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।
तोतली व भोली भाषा
बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।
वो दादा-दादी का किस्से-कहानी सुनाना
पहले बचपन में दादा-दादी व नाना-नानी काफी किस्से-कहानियां सुनाया करते थे। राम, कृष्ण, गौतम, बुद्ध, गांधी, शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा भारतीय वीरों व वीरांगनाओं की कहानियां सुनते-सुनते बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण हो जाया करता था। यह आजकल दुर्लभ होता जा रहा है, क्योंकि वर्तमान बुजुर्गों को टीवी व अन्य बातों के कारण समय ही नहीं है।
माता-पिता की डांट-फटकार
कई बच्चे जब जरूरत से ज्यादा शैतानी-नादानी किया करते थे तो वे मां-बाप की मार व डांट-फटकार भी खाया करते थे। माता-पिता का प्रयास रहता है कि बच्चा शैतानी नहीं करे तथा पढ़ने-लिखने में ही अपना सारा समय व ध्यान लगाए। ऐसा सोचना अनुचित है। माता-पिता के व बाल-मनोविज्ञान में जमीं-आसमान का अंतर होता है। बच्चों को अपनी ही सोसायटी में खेलने-कूदने देना चाहिए जिससे कि वे सामाजिकता सीख सकें।