अपने बचपन की किसी घटना का उल्लेख करते हुए विदेश में रह रहे अपने मित्र को पत्र लिखें ।
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priye mitra
Asha hai ki tum vha thik hoge.Mai yaha bilkul thik hoon.Mai tumhe ek event ke bare me tumhe batana chahti hoon.Tum jante ho ki hamare ghar ke aage ek well hai usme aaj ki ek tambe ki murti nikli hai.Savi log isse dekhkar utsuk hai mujhe v ye kafi intersting laga.Mai iss event ko kavi ni bhuloongi.Asha hai ki tum v isse dekhne ke liye utsukh hoge.
tumhara visvashi mitra
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मैं घर में दो भाइयों की छोटी बहन थी. मेरा जन्म तो दिल्ली में हुआ पर परवरिश गांव वाली मिली थी क्योंकि मम्मी-पापा दोनों ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे. इसलिए हमें शहरी बच्चों की तरह टिप-टॉप बनकर घूमने और पार्क में जाकर खेलने तक सीमित बचपन नहीं मिला. मैं भाइयों के साथ मिट्टी में खेली और लोट-पोटकर खेली. इस तरह खेलने पर मम्मी-पापा ने कभी रोक-टोक नहीं की. लेकिन मिट्टी में लोटते हुए भी मेरा दिमाग उड़न-तश्तरी की तरह जाने किस आसमान के चक्कर लगाता रहता, हर समय मैं कुछ न कुछ करने की फिराक में रहती थी. मुझे बचपन से ही एडवेंचर का बहुत शौक था, अब भी जब कभी सटक जाती हूं तो कभी पहाड़ चढ़ने शिमला निकल पड़ती हूं तो कभी नाव चलाना सीखने के लिए बनारस के किसी घाट पहुंच जाती हूं. घर वालों को भी मेरे इस शौक का अंदाजा पहले ही लग गया था क्योंकि बचपन में मैंने इस तरह की हरकतों के नैनो वर्जन उन्हें दिखा दिए थे.
जिस घटना का मैं यहां पर जिक्र करने जा रही हूं वह तब की है जब मेरी उम्र सात-आठ साल रही होगी. उन दिनों गर्मियों की छुट्टियां चल रही थीं. मई-जून की सुनसान और तीखी दोपहरों में बाकी सब तो सो जाते थे लेकिन मेरी नन्ही सी जान को चैन नहीं पड़ता था. मैं हमेशा दोपहर में कुछ न कुछ डेयरिंग करने का सोचती रहती थी. आखिर एक दिन मुझे गर्मी की बोरियत भरी दोपहर से खुद को बचाने का एक तरीका सूझ ही गया