अपने घरो में उपयोग की जाने वाली
मुख्म
रखी, तरी
और जामय फसलों की सूची बनाया
Answers
Answer:
अगरबत्ती का उपयोग लगभग प्रत्येक भारतीय घर, दुकान तथा पूजा-अर्चना के स्थान पर अनिवार्य रूप से किया जाता है। सुबह की दिनचर्या प्रारंभ करने से पहले प्रत्येक घर में अगरबत्ती जलाई जाती है, जो स्वतः ही इस उत्पाद की व्यापक खपत को दर्शाता है। अगरबत्तियां विभिन्न सुगंधों जैसे चंदन, केवड़ा, गुलाब आदि में बनाई जाती हैं। अधिकांशतः उपभोक्ताओं को इनकी किसी विशेष सुगंध के प्रति आकर्षण बन जाता है तथा वे प्रायः उसी सुगंध वाली अगरबत्ती को ही खरीदते हैं।
Hope u like Answer
Thank u
Explanation:
1•अरबी भाषा में 'ख़रीफ़' (خريف) शब्द का मतलब 'पतझड़' है। ख़रीफ़ की फ़सल अक्टूबर में पतझड़ के मौसम में तैयार होती है इसलिए इसे इस नाम से बुलाया जाता है।इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत में इनको जून-जुलाई में बोते हैं और इन्हें अक्टूबर के आसपास काटा जाता हैं
उदाहरण खरीब फसल:
धान (चावल)
मक्का
ज्वार
बाजरा
मूँग
मूँगफली
गन्ना
सोयाबीन
उडद
तुअर
कुल्थी
जूट
सन
कपास
2•रबी की फसल उत्तर भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने मैं की जाती है।रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि की फ़सलें रबी की फ़सल मानी जाती हैं।
रबी फसल के उदाहरण:
जौ
चना
मसूर
सरसों
मटर
तारामीरा
[आलु]
कठिया गेहूं, देशी चना, अलसी व सरसों चारों क्रमशः अनाज, दलहन व तिलहन की फसलें हैं, जो कम पानी में हो जाती हैं। यदि ये फसले देशी प्रजाती की हों, तो सूखा को सहन करने की क्षमता इनके अंदर अधिक होती है। इसके साथ ही ये सभी फसलें किसान की खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भी सहायक होती हैं। फसलों की विविधता होने से किसान को जोखिम भी कम उठाना पड़ता है अर्थात् जोखिम की संभावना कम हो जाती है। चित्रकूट सूखे बुंदेलखंड का अति पिछड़ा जनपद है। अन्य क्षेत्रों की तरह कम व अनियमित वर्षा, सिंचाई के अभाव में सूखती खेती और बदहाल होता किसान चित्रकूट की भी नियति है। यहीं का एक ग्राम पंचायत है- रैपुरा, जिसके अंतर्गत तीन राजस्व गांव गहोरा खास, गहोरापाही व कैरी कटनाशा हैं। इन गांवों की कुल आबादी 5794 है, जिसमें लगभग सभी जातियों के लोग निवास करते हैं। मुख्यतः ब्राह्मण, कुर्मी, यादव, कुम्हार, गुप्ता, लोहार. बढ़ई, साहू, मुस्लिम, हरिजन, नाई जातियां यहां पर निवास करती हैं। यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती हैं, परंतु उबड़-खाबड़ ज़मीन एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के चलते वर्षा आधारित खेती होने के कारण पिछले 10 वर्षों से सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है। ऐसी स्थिति में ग्राम रैपुरा के कुछ किसानों ने रबी के मौसम में मिश्रित खेती करके सूखे का मुकाबला करने का विचार किया, उसे अपनाया और अपने नुकसान को कम किया।