अपने इलाके में कुछ स्कूलों की यात्रा करें और एसएसए से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों की सूची बनाएं कि यह कार्यक्रम शिक्षा अधिनियम 200 9 और एसएसए के अधिकार के अनुरूप बनाने में कैसे मदद कर सकते हैं?
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सर्व शिक्षा अभियान का कार्यान्वयन वर्ष 2000-2001 से किया जा रहा है जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक सुलभता एवं प्रतिधारण, प्रारंभिक शिक्षा में बालक-बालिका एवं सामाजिक श्रेणी के अंतरों को दूर करने तथा अधिगम की गुणवत्ता में सुधार हेतु विविध अंत:क्षेपों में अन्य बातों के साथ-साथ नए स्कूल खोला जाना तथा वैकल्पिक स्कूली सुविधाएं प्रदान करना, स्कूलों एवं अतिरिक्त कक्षा-कक्षों का निर्माण किया जाना, प्रसाधन-कक्ष एवं पेयजल सुविधा प्रदान करना, अध्यापकों का प्रावधान करना, नियमित अध्यापकों का सेवाकालीन प्रशिक्षण तथा अकादमिक संसाधन सहायता, नि:शुल्क पाठ्य-पुस्तकें एवं वर्दियां तथा अधिगम स्तरों/परिणामों में सुधार हेतु सहायता प्रदान करना शामिल है। शिक्षा अभियान के दृष्टिकोण, रणनीतियों एवं मानदंडों में प्रारंभिक शिक्षा के विजन एवं दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जो निम्नलिखित सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है :-
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा, 2005 यथा व्याख्यायित शिक्षा का सम्पूर्ण दृष्टिकोण और पाठ्यक्रम, शिक्षक शिक्षा, शैक्षिक योजना और प्रबंध के लिए उल्लेखनीय निहितार्थों के साथ सम्पूर्ण सामग्री और शिक्षा के प्रोसेस के क्रमबद्ध पुनरूद्धार के निहितार्थ।साम्यता का अर्थ न केवल समान अवसर अपितु ऐसी स्थितियों का सृजन है जिनमें समाज के अपहित वर्गों- अ.जा.,अ.ज.जा.,मुस्लिम अल्पसंख्यक, भूमिहीन कृषि कामगारों के बच्चे और विशेष जरूरत वाले बच्चे आदि - अवसर का लाभ ले सकते हैं।पहुंच यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित नहीं होनी चाहिए कि विनिर्दिष्ट दूरी के अंदर सभी बच्चे स्कूल पहुंच योग्य हो जाएं परंतु इसमें पारम्परिक रूप से छोड़ी गई श्रेणियों- अ.जा.,अ.ज.जा. और अत्यधिक अपहित समूहों के अन्य वर्गों मुस्लिम अल्पसंख्यक, सामान्य रूप से लड़कियां और विशेष जरूरतों वाले बच्चों की शैक्षिक जरूरतों और दुर्दशा को समझना निहित है।बालक-बालिका सोच, न केवल लड़कों के साथ लड़कियों को बराबर करने का प्रयास है, अपितु शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति 1986/92 में बताए गए परिप्रेक्ष्य में शिक्षा को देखना अर्थात महिलाओं की स्थिति में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए निश्चायक हस्तक्षेप।उनको अभिनव परिवर्तन और कक्षा में और कक्षा से दूर संस्कृति के सृजन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक की केन्द्रीयता जो बच्चों, विशेष रूप से उत्पीडि़त और उपेक्षित पृष्ठभूमि से लड़कियों के लिए समावेशी परिवेश पैदा कर सकती है।आरटीई अधिनियम के माध्यम से अभिभावकों, अध्यापकों, शैक्षिक प्रशासकों और अन्य हिस्सेदारों पर दण्डात्मक प्रक्रियाओं पर बल देने की बजाए नैतिक बाध्यताएं लगाना।शैक्षिक प्रबंध की अभिसारी और एकीकृत प्रणाली आरटीई कानून के कार्यान्वयन के लिए पूर्व-अपेक्षा है। सभी राज्यों को उस दिशा में उतनी तेजी से बढ़ना है जितना व्यवहार्य हो।
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