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भारत और चीन की गणना विश्व की पांच महानतम सभ्यताओं (सिन्धु घाटी, मेसोपोटामिया, मिस्र, माया और चीनी सभ्यता) में की जाती हैं। दोनों पड़ोसी राष्ट्र हैं। अपने-अपने लंबे इतिहास में दोनों राष्ट्रों की जनता के बीच दुर्गम रास्तों के उपरान्त भी यात्रा का क्रम चलता रहा। दोनों ही राष्ट्रों के लोग एक-दूसरे से अनेक बातें सीखते आए हैं। इस पारस्परिक सम्बन्ध ने दोनों राष्ट्रों के बीच संस्कृति के विकास में महान योगदान ही नहीं दिया बल्कि विश्व संस्कृति के संवर्धन में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन काल से लेकर आज तक भारत और चीन की जनता पारस्परिक आदान-प्रदान के अटूट सूत्र में बंधी रही है। महाभारत काल से स्थापित यह सम्बन्ध बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद खूब फला-फूला। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ जिसने भारत-चीन संबंधों को अत्यंत कटुतापूर्ण बना दिया। आइए जानते हैं-
भारतीय वाङ्मय (साहित्य) में चीनभारत और चीन में प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार चीन की भूमि पर हुआ है। चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात् नालन्दा विश्वविद्यालय एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय को चुना था भारत की प्राचीन पुस्तकों में भी चीन का उल्लेख मिलता है-
भारत और चीन के सम्बन्ध प्राचीन काल से हैं। यद्यपि चीन शब्द का प्रथम अभिलिखित उल्लेख 1555 ई. से किया जाता है, किन्तु ऐसा माना जाता है कि चीन शब्द की उत्पत्ति प्राचीनतम भारतीय भाषा संस्कृत के शब्द ‘सिना’ (cina) से हुई है
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