Hindi, asked by jaimala4091, 8 months ago

अपने को पेड़ मानकर एक अनुच्छेद​

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Answered by ranabirshome82
0

Answer:

Repeat the same procedure for the pair of points in the other slip

c) Daw conclusions and complete the observation table

bution table

Sr. No.

Distance

between the

two points

using ruler

Given points

Coordinate Coordinate

of 1st point of 2nd point

Distance

between

the two

points using

formula (x)

.

D, H

4-- -

4+1-5

Ist slip

and slip

acestom Thus the distance between two points on a number line is 'reater coordinates

oordinate

ning outcome

1) The student understands the relation between the points, coordinates and distance between the

The student also understands to find the distance between two points whose coordinates are gi

your knowledge

What is the number associated with the point called?

Which formula is used to calculate the​

Answer:

 

Explanation:

 

Explanation:

Answered by pinky162
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Explanation:

मैं एक पेड़ हूं मेरा जन्म एक बीज के रूप में हुआ था मैं कुछ दिनों तक धरती पर यूं ही पड़ा रहा और धूल में भटकता रहा। कुछ दिनों बाद वर्षा का मौसम आया तो बारिश हुई, बारिश के कुछ समय बाद मैं बीज की दीवारों को तोड़कर बाहर निकला और इस दुनिया को देखा मैं उस समय बहुत ही कोमल था किसी के थोड़ा सा जोर से हाथ लगाने पर ही मैं टूट सकता था।

जब मैं छोटा था तब छोटी सी आहट से ही मुझे डर लगता था मुझे ऐसा लगता था कि कोई पशु पक्षी या फिर इंसान मुझे तोड़ न ले या फिर अपने पैरों के नीचे कुचल ना दे। लेकिन समय बीतता गया और मैं धीरे-धीरे बड़ा होता गया।

कुछ वर्षों में मैं प्रकृति को भी जानने लगा था कि कब बसंत ऋतु आती है, कब वर्षा ऋतु आती है, कब सर्द ऋतु आती है उस हिसाब से मैं अपने आप को ढाल लेता था।

मैंने अपने जीवन को बचाए रखने के लिए बहुत सी बाधाओं को पार किया है जैसे कि गर्मियों में सूरज की तेज धूप को सहा है तो कभी सर्दियों में बहुत अधिक ठंड को सहा है, कभी तेज तूफान आते है तो कभी ओले गिरते है, कभी कोई जानवर मुझे खाने को दौड़ता है तो कभी इंसान मेरी टहनियों को तोड़ लेता है।

इन सभी बाधाओं से मुझे बहुत तकलीफ हुई लेकिन इन बाधाओं ने मेरे को इतना मजबूत बना दिया है कि अब मैं किसी भी बाधा का सामना कर सकता हूं।

लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अब किसी जानवर के खाने का भय नहीं रहता है और गर्मी सर्दी भी मैं सहन कर लेता हूं बड़ा होने के कारण अभी इंसान भी मेरी टहनियां नहीं तोड़ पाते है।

अब मेरे ऊपर कुछ पुष्प और फल भी लगने लगे है। मेरे पुष्प भगवान के चरणों में अर्पित किए जाते है जो कि मुझे बहुत अच्छा लगता है।

मेरे फल खाने के लिए बच्चे दौड़े चले आते है वह मेरे कच्चे फल ही खा जाते है। मेरे फल खाकर छोटे बच्चे बहुत खुश होते है यह देखकर मेरे हृदय में को भी सुकून मिलता है की मेरे होने से किसी को तो खुशी मिल रही है। और हम पेड़ों का असली मकसद ही यह रहता है कि हम जीवन भर कुछ ना कुछ इस धरती के प्राणियों को देते रहें।

समय व्यतीत होता रहा और मेरी टहनियां और मजबूत हो गई मेरी टहनियों के मजबूत होते ही बच्चों ने मेरे ऊपर झूले डाल दिए और जोर-जोर से झूलने लगे। बच्चे जब झूल रहे थे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था झूले की रस्सियों से मुझे चुभन और दर्द तो हो रहा था लेकिन बच्चों की प्यारी मुस्कान के आगे वह दर्द कुछ नहीं था इसलिए मैं भी अपनी डाल को हिलाकर उन्हें ठंडी हवा दे रहा था।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था और मैं पहले से ज्यादा बड़ा और मजबूत होता जा रहा था मेरी शाखाएं दूर-दूर तक फैलने लगी थी। गर्मियों में जब भी कोई राही तेज धूप से बचने के लिए मेरे नीचे आकर बैठता और आराम करता तो मैं उसे ठंडी छांव देता और टहनियों को हिला कर उन्हें हवा देता वह प्रसन्न होकर मुझे खूब दुआएं देते यह देख कर मुझे अच्छा लगता।

कुछ लोग बारिश से बचने के लिए मेरे नीचे आकर खड़े हो जाते हैं मैं भी उनको बारिश से बचाने के लिए अपने पत्तों का ऐसा जाल बनता कि वह छतरी के समान बन जाता जिससे वह लोग बारिश में भीग नहीं पाते थे और बारिश खत्म होने पर भी खुशी-खुशी घर चले जाते थे।

मेरी विशाल शाखाओं पर बहुत सारे पक्षी आते है और उनमें से कुछ पक्षी मेरी शाखाओं पर अपना घोंसला बनाते है यह मुझे अच्छा लगता है कि कोई मेरी शाखाओं पर अपना घर बसा कर अपना जीवन यापन कर रहा है।

कुछ पक्षी उड़ते हुए थक जाते थे तो वे मेरी टहनियों के ऊपर आकर आराम करते हैं और मेरा धन्यवाद करके फिर से अपनी मंजिल की ओर उड़ कर चले जाते। लेकिन जिन पक्षियों ने मेरे ऊपर घर बनाया था वह सुबह दाना चुगने के लिए जाते और शाम को अपने घोंसले में लौट आते है।

वे पक्षी जब दाना चुगने जाते तब मैं उनके घोंसले की रक्षा करता था और उन पक्षियों के साथ मेरा एक अनूठा प्रेम बन गया था मानो ऐसा लग रहा था कि एक हमारा छोटा परिवार बन गया है।

मैं पहले से ज्यादा लोगों को अब फल और फूल दे रहा था लोग खुश होकर उन्हें खा रहे थे और मेरा धन्यवाद भी कर रहे थे।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था मैं भी बूढ़ा हो रहा था और मेरी कुछ शाखाएं सूखने भी लगी थी लेकिन उनकी जगह नई शाखाएं भी आ रही थी। मेरा जीवन अच्छा व्यतीत हो रहा था।

लेकिन कुछ मनुष्य मेरी मोटी टहनियों को देखकर मुझे काटने का विचार करने लगे यह देख कर मुझे बहुत ही दु:ख हुआ कि मैंने जीवन भर इंसानों को सब कुछ दिया लेकिन आज ये अपने स्वार्थ के लिए मुझे काटना चाहते है।

कुछ दिन बाद ही कुछ लोग आए और मुझे काटने लगे मुझे बहुत ही पीड़ा हो रही थी लेकिन मैं अपनी पीड़ा जाहिर भी तो नहीं कर सकता था और ना ही कटने से बचने के लिए भाग सकता था।

उन लोगों ने मुझे पूरा काट दिया और फिर मेरी कुछ लकड़ियों को जला दिया और कुछ लकड़ियों से अपने काम की वस्तुएं बना ली। मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने जीवन भर सब की सेवा की और मरने के बाद भी मेरी लकड़ी लोगों के काम आयी।

लेकिन मेरे मन में आज भी एक सवाल है हमने जीवन भर इंसानों को खूब फल, फूल, लकड़ियां, धूप से बचाने के लिए छांव और सबसे महत्वपूर्ण हमने इंसानों के जीवन के लिए ऑक्सीजन दी जिससे बिना इंसान जीवित नहीं रह सकते, हमने पृथ्वी को हरा भरा बनाए रखा, पृथ्वी के वातावरण में घुली जहरीली गैसों को भी साफ किया।

फिर भी इंसानों ने अपने थोड़े से स्वार्थ के चलते हमें काट दिया। इस बात को लेकर हम पेड़ों को बहुत दुख होता है। लेकिन शायद इंसान की सोच ऐसी ही होती है कि जब तक किसी से कुछ मिलता रहे तब तक तो उसे पूछते हैं और जब मिलना बंद हो जाता है तो उसे ठुकरा देते है।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि मेरी सोच गलत थी कि जानवर हमें खा जाएंगे और मैं जानवरों से डरता था लेकिन बड़े होने पर समझ में आया कि हमें जानवरों से नहीं इंसानों से खतरा है।

मैं पेड़ आप सभी से निवेदन करना चाहूंगा कि आप हम पेड़ों को काटे नहीं और ज्यादा से ज्यादा लगाएं जिससे हम इस पृथ्वी को और खुशियों से भर दे।...

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