अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं।
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इस कविता में वसंत ऋतु की शुरुआत में जो माहौल होता है उसकी चर्चा की गई है। कविता का शीर्षक उस मधुर संगीतमय वातावरण की तरफ इशारा करता है जो वसंत ऋतु के शुरु होने पर रहता है। अभी तो मधुर वसंत की शुरुआत ही हुई है। इसलिए अभी उसका अंत नहीं होने वाला। हर सुंदर चीज का अस्तित्व थोड़े ही समय के लिए रहता है। या कई बार ऐसा होता है कि उसकी सुंदरता निहारने में हम इतने मगन हो जाते हैं कि हमें लगता है जैसे समय जल्दी बीत गया हो। वसंत साल का सबसे सुन्दर मौसम होता है और खुशनुमा होने की वजह से लगता है जैसे बहुत थोड़े समय के लिए ठहरता है। कवि ने इसी भावना को चित्रित करने की कोशिश की है।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न मृदुल कर
फेरूंगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
वसंत में डालियाँ, कलियाँ और छोटे पौधे सभी कोमल होते हैं। कवि ने लिखा है कि वह अपने सपनों जैसे मुलायम हाथों से नींद में डूबी कलियों को जगाने की कोशिश करता है। इससे जब फूल खिलते हैं तो एक नये सबेरे का प्रारंभ होता है।
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं।
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं।
वसंत ऋतु हर फूल से नींद की आलस को खींचने की कोशिश करता और हर किसी में नये जीवन का अमृत भर देता है।
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको
हैं वे मेरे जहाँ अनंत
अभी न होगा मेरा अंत।
जब फूल खिल जायेंगे तो वसंत उन्हें इस असीम संसार के दरवाजे खोलकर उसका मनोहारी दृश्य दिखाएगा।
अगर दार्शनिक तौर पर देखा जाए तो वसंत का कभी अंत नहीं होता। बल्कि वसंत तो एक शुरुआत होती है। वसंत में खिले फूल ही आगे चल के फल बनते हैं। वो फल सभी जीव जंतुओं को भोजन देकर खुशियाँ बाँटते हैं। आखिर में उन्हीं फलों से बीज तैयार होते हैं और एक नई पीढ़ी की शुरुआत होती है। इसलिए वसंत बार-बार ये कह रहा है कि अभी उसका अंत नहीं होगा।
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