"अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?'' सांप ने ऐसा क्यों कहा?
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अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?'' अब साँप आकाश में कमियाँ खोजता हुआ अपने आप से कहता है कि न तो उस आकाश में कोई छत है, न ही कोई दीवारें हैं, न तो उसके रेंगने के लिए कोई ज़मीन है। तो उसे वहाँ कैसे आनंद आ सकता है। उसका तो आसमान में दो पल में ही सिर चकराने लगा था।
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