Hindi, asked by E05, 9 months ago

अपनी पाठ्यपुस्तक विक्रम बेताल से अगली चार कहानी को पढ़िए ।किन्हीं दो कहानी को चुन कर तथा चुनी गई शायरी को मिलाकर दो स्वनिर्मित रंगीन, आकर्षक हास्य पत्रिका बनाइए | हास्य पत्रिका के आवश्यक तत्व- १- संपादकीय ( editorial) २- इंडेक्स ३-कवर पेज ४-पेज नंबर इन सभी तत्वों को शामिल कीजिए ।

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Answered by moinkazi667
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Answer:

जिन विक्रम बेताल के किस्सों को सुनकर हम बड़े हुए हैं, उन्हीं बेताल बाबा का चबूतरा बना है यहां पर।

उज्जैन। अंधेरी रात... तलवार हाथ में लिए बेखौफ राजा विक्रमादित्य... उनके सामने भयावह दिखता घना बरगद का पेड़ और उस पर लाल होंठ, बड़े नाखून, लंबे बाल वाला उलटा लटका सफेद पोश बेताल... विक्रम-बेताल का नाम आते ही यह दृश्य जहन में उभर जाता है। हकीकत जो भी हो, लेकिन न तो राजा विक्रम को भूल पाते हैं, न बेताल को और न ही वह पेड़ जिसके नीचे से 25 कहानियों की शुरुआत होती थी। आज वह पेड़ तो नहीं है, लेकिन शिप्रा किनारे एक टीला है, जो उस पेड़ के होने की कहानी की याद को ताजा कर देता है।

हाल में शुरू हुए सीरियल बेताल और सिंहासन बत्तीसी ने फिर कई जिज्ञासाओं को जन्म दे दिया है। मान्यता के अनुसार राजा विक्रमादित्य के वीरों में से एक बेताल, जिस पेड़ पर उलटा लटका रहता था, वह उज्जैन में शिप्रा किनारे लगा था। यहां आने वाले क्षेत्रवासी को 69 वर्षीय पूनम दादा विक्रम-बेताल के किस्से बताते हैं। पत्रिका टीम को भी पूनम दादा ने छड़ी के इशारे से बड़ा घेरा बनाते हुए बताया कि इसी जगह बरगद का विशाल पेड़ था, जिस पर बेताल बाबा रहते थे।

रखरखाव की कमी के कारण पेड़ पूरी तरह सूख चुका था। लगभग 40 वर्ष पहले पेड़ अपने आप ही टूट गया। आज भले ही वह पेड़ नहीं है, लेकिन लोगों में उस स्थान को जानने की जिज्ञासा बरकरार है। पूनम दादा ने बताया कि जहां पेड़ था उस टीले पर उन्होंने वर्ष 1980 के लगभग एक छोटा ओटला बना दिया था, जिससे स्थान की पहचान हो सके।

क्षेत्रवासियों ने सहेजी निशानी

विक्रम बेताल के किस्से देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चित हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन तो इस विरासत को सहेज नहीं पाया, लेकिन क्षेत्रवासियों की सक्रियता के कारण निशानी फिर भी बची हुई है।

रोज मंदिर जाते थे बेताल बाबा

बेताल जिस पेड़ पर रहते थे, उसके सामने स्थित विक्रांत भैरव मंदिर के पुजारी बंशीलाल मालवीय बताते हैं। बेताल बाबा रोज यहां आते थे। मंदिर के बाहर पत्थर का चबूतरा है। बंशीलाल के अनुसार विक्रमादित्य इसी चबूतरे पर बैठते थे।

आज भी होती है पूजा

विक्रांत भैरव मंदिर और नदी पार ओखलेश्वर श्मशान व आसपास का क्षेत्र आज भी तंत्र क्रियाओं के लिए जाना जाता है। क्षेत्रीय लोग अकसर टीले पर बने ओटले का पूजन करते हैं।

ऐसे पहुंच सकते हैं टीले पर

बेताल का बरगद अति प्राचीन ओखलेश्वर श्मशान के नजदीक लगा हुआ था। यहां पहुंचने के लिए गढ़ कालिका मंदिर तक जाना होगा। गढ़ कालिका मंदिर के बिलकुल नजदीक से नीचे की ओर सड़क जा रही है, जो लगभग 500 मीटर दूरी पर ओखलेश्वर श्मशान तक पहुंचती है। श्मशान के पास ही वह टीला और ओटला स्थापित है। इसी के सामने शिप्रा पार विक्रांत भैरव मंदिर है। वहां काल भैरव मंदिर के सामने स्थित मार्ग से होते हुए पहुंचा जा सकता है।

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