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कोरोना वायरस: चीन के वुहान शहर में फंसे एक भारतीय परिवार की आपबीती
प्रशांत चाहल
बीबीसी संवाददाता
9 फ़रवरी 2020
आशीष यादवइमेज स्रोत,ASHISH YADAV
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नेहा और आशीष यादव
प्रोफ़ेसर आशीष यादव के अपार्टमेंट से बाहर का नज़ारा मानो थम चुका है.
बस ठंडी हवा है जो बह रही है, वरना दूर तक वीरान सड़कों के सिवा उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता.
बीते दो सप्ताह में उन्हें कई बार हथियारबंद सैनिक अपने अपार्टमेंट के बाहर घूमते दिखे हैं.
साथ ही चीन के सरकारी मीडिया के माध्यम से विचलित करने वाली कुछ सूचनाएं मिल रहीं हैं जो उनकी बेचौनी को और बढ़ा रही हैं.
जिस 32 मंज़िला अपार्टमेंट में आशीष 'क़ैद' होकर रह गए हैं, उसमें अब सिर्फ़ चार-पाँच चीनी परिवार ही बचे हैं.
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समाप्त
उन्हें आशंका है कि उन तक कोई मदद पहुँच भी पाएगी. लेकिन वे जल्द से जल्द चीन के वुहान शहर से निकलना चाहते हैं.
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आशीष यादव के अनुसार वे पिछले तीन हफ़्ते से अपने घर से नहीं निकल पाए हैं
पहली बार विदेश में डर का एहसास
35 वर्षीय आशीष वुहान टेक्सटाइल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.
वे यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित अपने अपार्टमेंट के दो क़मरे के मकान में 22 जनवरी की रात से बंद हैं. उनके साथ उनकी पत्नी नेहा यादव भी हैं.
उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले से वास्ता रखने वाले आशीष यादव बीते 12 वर्षों से विदेश में हैं.
अमरीका से उन्होंने फ़िज़िक्स की पढ़ाई की, फिर इटली से पीएचडी की और पाँच साल से चीन में नौकरी कर रहे हैं.
वे कहते हैं कि 'ये पहली बार है, जब उन्हें विदेश में डर का अहसास हुआ है.'
आशीष एक साल पहले ही वुहान पहुँचे थे. वे लेज़रस्पेट्रोस्कोपी के विशेषज्ञ हैं.
पर वे अब एक ऐसे शहर में फंस गए हैं जो कोरोना नाम के जानलेवा वायरस का सबसे ज़्यादा प्रकोप झेल रहा है और इस बीमारी का केंद्र भी बताया गया है.
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संख्या अधिक होने की आशंका
अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने वाली कोई दवा तैयार नहीं की जा सकी है और आधिकारिक तौर पर इस वायरस से मरने वाले मरीज़ों की संख्या 800 से अधिक हो चुकी है.
ये संख्या 2003 में सार्स वायरस के फ़ैलने से हुई मौतों की संख्या को भी पार कर चुकी है. हालांकि आशीष से संपर्क में बने हुए उनके चीनी सहयोगियों को मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने की आशंका है.
आशीष बताते हैं, "जिन चीनी सोशल मीडिया ऐप्स का हम इस्तेमाल करते हैं, उन पर कई ग्रुप्स में मैं शामिल हूँ. चीन के जो लोग मेरे दोस्त हैं, वे कई अलग प्रांतों में रह रहे हैं, उनके अनुसार मरने वालों की संख्या कहीं ज़्यादा हो सकती है. पर यहाँ सूचनाएं नियंत्रित हैं और मीडिया को रिपोर्ट करने की आज़ादी नहीं है. इसलिए ख़बरें नहीं मिलतीं, बल्कि सूचनाएं मिलती हैं जो सरकारी मीडिया जारी करता है."
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सभी बाज़ार 22 जनवरी 2020 से बंद हैं
डेढ लाख सैनिक शहर में उतारे गए
बीबीसी से बातचीत में आशीष ने बताया, "इस भयंकर वायरस के फ़ैलने की पहली सूचना हमें 26 दिसंबर 2019 को मिली थी. सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा होने लगी थी. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी कहा कि सब सतर्क रहें. लेकिन स्थानीय प्रशासन क़रीब तीन हफ़्ते तक स्थिति तो सामान्य बताता रहा."
"इस बीच काफ़ी लोग चीनी नव वर्ष की छुट्टियाँ मनाने के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ अपने-अपने प्रांत (घर) चले गए. हमारे अपार्टमेंट के अधिकांश लोग इसी दौरान वुहान से निकल गए थे. यूनिवर्सिटी में जो भारतीय छात्र हैं या नौकरीपेशा लोग हैं, उनमें से भी कुछ लोग निकल गए."
"स्थानीय स्तर पर बताया जाता रहा कि स्थिति नियंत्रण में है और कुछ दिन में सब सामान्य हो जाएगा. इसलिए हम यहाँ बने रहे. लेकिन 21-22 जनवरी की दरमियानी रात को सारा शहर लॉक कर दिया गया. सभी सार्वजनिक सेवाएं बंद कर दी गईं, कह दिया गया कि अब कोई घर से बाहर ना निकले."
"इसके बाद शहर में क़रीब डेढ़ लाख सैनिक उतार दिए गए ताकि वे लोगों को घरों से बाहर निकलने से रोकें. और ये सब बहुत तेज़ी से किया गया. इस वक़्त लोगों में इतना डर है कि अगर सरकार कुछ घंटों की ढील दे दे तो लोग शहर छोड़कर भागने लगेंगे."
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वो कैंपस जहाँ आशीष यादव रहते हैं (कुछ दिन पुरानी फ़ोटो)
'पत्र है पर ज़रिया नहीं'
रविवार सुबह चार सिपाही आशीष के अपार्टमेंट में आए जिन्होंने उनका और उनकी पत्नी नेहा का बुखार जाँचा और बताया कि उनकी बिल्डिंग को जल्द ही सील कर दिया जाएगा, ताकि वहाँ कोई आ ना सके.
पुलिस से मिली इस सूचना ने आशीष को अब और परेशान कर दिया है क्योंकि वे वहाँ से निकलने की सारी कोशिशें कर रहे थे. हालांकि सिपाहियों ने उन्हें एक अच्छी ख़बर भी दी, और वो ये कि उनके यूनिवर्सिटी कैंपस में अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित कोई मरीज़ नहीं मिला है.
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Answer:
अपने परिवार के किसी सदस्य को कोविड - 19 के बारे मे अपना अनुभव बताते हुए 800 शब्दो मे पत्र
Explanation:
प्रिय भाई वरुण,
जैसा कि आप जानते हैं, पिछले वर्ष 2020 हम सभी के लिए समस्याओं से भरा रहा है। हम अपने जीवन में पहली बार कोरोना नामक एक महामारी से मिले।
अंतिम बार 1912 में स्पेनिश फ्लू नाम की एक महामारी आई थी।
ये महामारी लगभग 100 या 200 वर्षों के बाद वापस आती रहती है।
वे एक स्पष्ट संकेत हैं कि हम मनुष्य किसी दिन गलत तरीके से काम कर रहे हैं और आदर्श जीवन शैली नहीं जी रहे हैं।
जब भी कोई महामारी होती है तो वह ईश्वर से हमारे लिए एक संदेशवाहक होती है जिसे हमें अपनी जीवन शैली और अपनी कार्यशैली को बदलने की आवश्यकता होती है।
यहां तक कि नए कोरोना महामारी ने हमें सिखाया है कि हमें अपने घरों को साफ रखने, खाने से पहले सभी फलों और सब्जियों को धोने, सामाजिक दूरी बनाए रखने की आवश्यकता है।
हालाँकि यह भावनात्मक रूप से परेशान है लेकिन यह जीवन का नया तरीका है जिसका हमें पालन करना होगा।
क्या आप जानते हैं कि निकिता हमारी चचेरी बहन है जो हमारे घर के पास रहती है और कोरोना की बीमारी से पीड़ित थी। उसको चौदह दिनों से खांसी जुकाम और तेज सांसों की दुर्गंध आ रही थी।
वह एक अलग कमरे में रह रही थी और भोजन, पानी और चाय सब कुछ अलग ढंग से परोसा गया था।
यह वास्तविक जीवन में वास्तव में कठिन था। अब वह ठीक हो गई है और घर से काम कर रही है
इसलिए आप सभी को सचेत रहना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए।
आपकी प्यारी दीदी
शोभा