Hindi, asked by gauravyadav69, 11 months ago

अपने परिवार के किसी सदस्य का साक्षात्कार लीजिए और उनके तथा अपने बाल्यकाल का तुलना 100 से 150 शब्दों में कीजिए?​

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Answered by bhatiamona
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अपने परिवार के किसी सदस्य का साक्षात्कार लीजिए और उनके तथा अपने बाल्यकाल का तुलना 100 से 150 शब्दों में कीजिए?​

मेरे परिवार में मेरे दादा जी का साक्षात्कार :

पोता : दादा जी , आज मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ ?

दादा जी : अच्छा जी , पूछो-पूछो |

पोता : मैं आपका साक्षात्कार लेना चाहता हूँ |

दादा जी : ठीक है ले लो |

पोता : दादा जी , आप अपने बचपन के बारे में बताओ ?

दादा जी : बेटा मेरा बचपन बहुत अच्छा था | मैंने अपने बचपन में बहुत मस्ती की | आज के बच्चों के बचपन की तरह नहीं , एक बंद कमरे में बचपन निकल जाता है |

पोता : दादा ऐसा क्यों ?

दादा जी : बचपन में मैं गाँव में अपने दोस्तों के साथ दिन-बाहर खेलता था | गाँव में बचपन के दिन मुझे आज भी याद आते है | खेल के घर आने के बाद , घर में कामों में हाथ बाँटना , अपने पाले हुए जानवरों की सेवा करना |

पोता : अच्छा आप यह सब काम भी करते थे |

दादा जी : हाँ , और हम गाँव के मेलों में जाना  , मिट्टी में खेलना , सबके साथ मिलकर खेलना , साथ मिलकर स्कूल जाना |  

पोता : दादा जी अपने स्कूल के बाद सफर के बारे में बताओ |

दादा जी : पढ़ाई के बाद , मैं आर्मी में चला गया था , बचपन से मेरा सपना था , मैं आर्मी मैं जाऊंगा | अपने देश की रक्षा करूं | आर्मी में मैंने बहुत कुछ सीखा , देश की जगह-जगह घुमी |

पोता : दादा जी आपने अपना जीवन बहुत अच्छी तरह से बिताया है , जीवन के हर रंग का आनन्द लिया है |

दादा जी : हाँ , मैंने अपनी सारी जिम्मेदारियां , फर्ज़ बहुत अच्छी तरह निभाई है |

अपने बाल्यकाल का तुलना :

मेरे दादा जी के बचपन से तुलना की जाए तो , वह मेरे बचपन से बहुत लग है | उनका बचपन मेरे बचपन से बहुत अलग है | उनका बचपन , मिट्टी में , दोस्तों के साथ , उनके परिवार के साथ बिता है |

मेरा बचपन एक बंद कमरे में बिता है | हमारे साथ खेलने के लिए किसी के पास समय नहीं था | शहर में बचपन घर में रह कर , गेम्स  खेलना , टेलीविजन , मोबाईल आदि में मेरा बचपन निकल गया है | दादा दादी का बचपन और हमारा अपना बचपन में  बहुत  अंतर है |

अब समय के साथ सब कुछ बदल गया है | दादा दादी के बचपन में प्यार होता था , वह अकसर  दादा-दादी अपने बचपन में  कहानियों किस्से सुन कर बड़े हुए है |दादा-दादी बहार खेलते थे , मिट्टी की खुशबु में खेलना | दादा-दादी का बचपन खुले में बीतता था, पेड़- खेत , पशु-पक्षी |

हमारा बचपन में किसी के पास समय ही नहीं बच्चों को पलने के लिए भी दूसरों के हाथों में दिया जाता है | हमारा बचपन में तो टीवी, मोबाईल  सब  आर्टिफिशियल जैसे हो गया है |  हमारा बचपन चारदीवारी में रह गया है |  

हम कह सकते हैं कि दादी-दादी के बचपन का बचपन हमारे बचपन से बहुत अच्छा था |

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