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मार्च का महीना है. मौसम में अभी रूमानियत बची है. वह सोकर उठा है. लेकिन उसने अभी बिस्तरा नहीं छोड़ा है. नींद खुलने के बाद कुछ देर बिस्तरे पर लेटे रहना उसे हमेशा अच्छा लगता रहा है. इस वक्त उसे सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा है. सुबह के दस बज चुके हैं. अखबार की नौकरी रात देर तक चलती है. देर से घर आओ. देर से सो जाओ और देर से उठो. उसने पाया कि वह आज अन्य दिनों के मुकाबले ज्यादा खुश है.
आज उसकी छुट्टी है. अखबार में रविवार को भाग्यशाली लोगों को ही छुट्टी मिलती है. आज सोमवार है. उसकी वीकली ऑफ है. लेकिन वह इसलिए खुश नहीं है कि आज उसका ऑफ है. उसकी खुशी का कारण कुछ और है. उसे आज एक लड़की से मिलना है. यही उसकी खुशी की वजह है. उसने फुर्ती से उठकर वॉश बेसिन पर मुंह धोया और वापस आकर अपने बिस्तरे पर लेट गया.
किचन से आने वाली आवाजें बता रही हैं कि पत्नी चाय बना रही है. उसने देखा सामने की दीवार पर घड़ी लटकी समय बता रही है. अभी उसके पास काफी समय है. उसने दीवार की तरफ पीठ कर ली है. अब उसके सामने खिड़की है. खिड़की जो हमेशा बंद रहती है. खिड़की के दोनों सिरों पर कुछ किताबें बेतरतीब रखी हैं. लकड़ी के फट्टों वाली खिड़की के दोनों किवाड़ों में जाली लगी है. बाहर एक और दरवाजा है जो बंद रहता है. उसके दोनों पल्लों पर शीशे लगे हुए हैं. खिड़की खुलने की कोई संभावना नहीं है. फिर भी उसे बाहर की दुनिया सुंदर लग रही है. रूमानी लग रही है। पता नहीं क्यों?
'चाय', पत्नी ने चाय का कप उसके बेड पर रखते हुए कहा है. उसने पलट कर पहले चाय और फिर पत्नी को देखा. दोनों की नजरें पल भर के लिए मिलीं. पता नहीं पत्नी उसके चेहरे पर क्या तलाशती रही.
'खिड़की के बाहर क्या देख रहे हो?'
उसने खिड़की के बाहर देखते हुए ही कहा, 'सोच रहा हूं कि ये खिड़की कैसे खुल सकती है?'
'ये खिड़की नहीं खुल सकती, सालों से बंद है. अब तो जाम हो गई है,' पत्नी ने आत्मविश्वास से कहा.
वह फिर खिड़की के बाहर की रूमानी सी लगती दुनिया को देखने लगा.
'आज कहीं जाना है क्या?' पत्नी ने पूछा.
'हां, जाना है किसी से मिलने'.
पत्नी ने नहीं पूछा कि किस से मिलने जाना है. वह भीतर किचन में चली गई. उसे इस बात से बड़ी राहत मिली. पत्नी सीधी हो तो उसके बहुत फायदे हैं. वह ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करती. पति पर आंख बंद करके भरोसा करती है. उसे कुछ भी कह कर बहकाया जा सकता है-चीट किया जा सकता है. उसे पत्नी के रूप में अपनी पसंद पर पहली बार खुशी हुई. वह खिड़की के बाहर की दुनिया को छोड़कर भीतर आया. उसने घड़ी को देखा. अभी ग्यारह बजने में थोड़ा समय है. अगर वह ग्यारह बजे तैयार होना शुरू करेगा तब भी साढ़े ग्यारह तक तैयार हो जाएगा.
मंडी हाउस पहुंचने में मुश्किल से आधा घंटा लगेगा. उससे मिलने का समय बारह बजे का है. आज पहली बार उससे मुलाकात होगी. क्या पता प्रेम की कोई नई खिड़की खुल ही जाए. उसे वह कुछ समय से जानता है. सुंदर है, समझदार है.
'नाश्ता में क्या खाओगे?' पता नहीं पत्नी कब अंदर से आकर उसके पास खड़ी हो गई. पत्नी के लिए समझदारी का एक ही अर्थ है पति को सही समय पर नाश्ता, लंच और डिनर उपलब्ध कराना.
'कुछ भी बना लेना,' इस समय नाश्ते के बारे में सोचना उसे खराब सा लगा. पत्नी फिर से अंदर चली गई और वह उठकर जाने की तैयारी करने लगा.
वह ठीक पंद्रह मिनट बाद तैयार होकर शीशे के सामने खड़ा था. ब्लैक कलर की पेंट और ब्ल्यू कलर की शर्ट. शीशे में उसने खुद को देखा. पहली बार उसे लगा कि वह स्मार्ट है. एक बार उसने कहा भी था, ब्लैक और ब्ल्यू का कांबिनेशन अच्छा लगता है. वह अच्छा लग रहा है. सब कुछ योजना के मुताबिक ही चल रहा था.
आज पहली बार उसने बाहर किसी जगह मिलने के लिए स्वीकृति दी थी. उसने कंघी से बाल सैट किए. वह पीछे की तरफ बाल बहाता है. बायीं तरफ को बाल थोड़े कम हैं और दायीं तरफ ज्यादा. फिर वह दायीं तरफ के बालों को कुछ इस तरह सैट करता है कि बाल ऊपर को उठ जाते हैं. बिल्कुल फिल्मी नायकों के बालों की तरह. बाकी सब तो ठीक था लेकिन दायीं तरफ के बाल ऊपर उठने को तैयार नहीं हो रहे थे. उसने कंघी को उल्टा करके बालों पर इस तरह फेरा की बाल सैट हो जाएं और दायीं तरफ का बालों का हिस्सा ऊपर को उठ जाए. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी ऐसा हो नहीं रहा था. उसे अहसास हुआ कि शीशे के सामने उसे काफी समय हो गया है.
बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है. वह 18-19 साल का रहा होगा. तब उनके घर में ड्रेसिंग टेबल नहीं था. उसे हाथ में छोटा सा शीशा लेकर बाल बनाने होते थे. एक बार वह इसी तरह बाल बना रहा था. पता नहीं उसे देर हुई थी या नहीं लेकिन पिता ने दूसरे कमरे से आवाज लगाकर पूछा था, क्या बात है आज किसी खास जगह जाना है. वह समझ गया था कि पिता समझ गए हैं कि उसे कहां जाना है. पिता की नजरें बहुत पैनी थीं. पिता को जवाब देने का अर्थ होता, उनके जाल में फंस जाना. वह चुप रहा और पिता के चेहरे पर मुस्कराहट खेलने लगी. लेकिन अब पिता नहीं रहे.
अब कोई नहीं है जो उसकी चालाकी या धूर्तता को पकड़ सके. घर में पत्नी और वह अकेले है. उसने दायीं तरफ गर्दन को मोड़ कर देखा है. पत्नी जमीन पर अखबार बिछा कर भिंडी काट रही है. अपने आप में डूबी हुई. उसने बालों पर आखिरी बार कंघी फेरी, शीशे में एक बार फिर से खुद को देखा और सब कुछ ठीक पाने पर कमरे से बाहर आ गया.
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हम बचपन में अपने दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से कहानियां सुना करते थे और उन्हें सुनकर बड़े हुए। उन कहानियों के साथ हम एक काल्पनिक यात्रा पर निकल पड़ते थे। वे बड़े अच्छे दिन थे जब नानी हमें बीरबल की बुद्धि, पांडवों की धार्मिकता, विक्रम और बेताल की कहानियां सुनाया करती थीं।
उन कहानियों से हमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने में मदद मिली, लेकिन बढ़ती टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर पहलू पर वार किया है। आज का सामाजिक ढांचा बदल गया है। अब जॉइंट फैमेली नहीं रह गई है, एकल परिवारों का चलन है और माता-पिता दोनों कामकाजी हैं तो बच्चों को कहानी कौन सुनाए? अब सब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। लेकिन हम आपको यहां बता रहे हैं कहानी कहने के लाभ-
hope it will help you
thanks