अपने राज्य की एक बर्ड सेंचुरी के विषय में विस्तार से लिखिए
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सालिम मुईनुद्दीन अब्दुल अली (१२ नवंम्बर १८९६ - २० जुन १९८७) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। उन्हें "भारत के बर्डमैन" के रूप में जाना जाता है, सालिम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफी मदद की है। 1976 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। 1947 के बाद वे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के प्रमुख व्यक्ति बने और संस्था की खातिर सरकारी सहायता के लिए उन्होंने अपने प्रभावित किया और भरतपुर पक्षी अभयारण्य (केवलादेव नेशनल पार्क) के निर्माण और एक बाँध परियोजना को रुकवाने पर उन्होंने काफी जोर दिया जो कि साइलेंट वेली नेशनल पार्क के लिए1930 में भारत लौटने पर उन्होंने पाया कि गाइड व्याख्याता के पद को पैसों की कमी के कारण समाप्त कर दिया गया है। और एक उपयुक्त नौकरी खोजने में वे असमर्थ थे, उसके बाद सालिम अली और तहमीना मुम्बई के निकट किहिम नामक एक तटीय गाँव में स्थानांतरित हुए। यहाँ उन्हें बाया वीवर के प्रजनन को नज़दीक से अध्ययन करने का अवसर मिला और उन्होंने उसकी क्रमिक बहुसंसर्ग प्रजनन प्रणाली की खोज की।[14] बाद में टीकाकारों ने सुझाव दिया कि यह अध्ययन मुगल प्रकृतिवादियों की परंपरा थी और सालिम अली की प्रशंसा की।[15] उसके बाद उन्होंने कुछ महीने कोटागिरी में बिताया जहाँ के॰एम॰ अनंतन ने उन्हें आमंत्रित किया था, अनंतन एक सेवानिवृत्त आर्मी डॉक्टर थे जिन्होंने प्रथम विश्व के दौरान मेसोपोटामिया की सेवा की थी। अली का सम्पर्क श्रीमती किनलोच से भी हुआ जो लाँगवुड शोला में रहती थी और उनके दामाद आर॰सी॰ मोरिस जो बिलिगिरिरंगन हिल्स में रहता था।[16] इसके बाद उन्हें शाही राज्यों में वहाँ के शासकों के प्रायोजन में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण करने का अवसर मिला जिसमें हैदराबाद, कोचिन, त्रावणकोर, ग्वालियर, इंदौर और भोपाल शामिल हैं। उन्हें ह्यूग व्हिस्लर से काफी सहायता और समर्थन प्राप्त हुआ जिन्होंने भारत के कई भागों का सर्वेक्षण किया था और इससे संबंधित काफी महत्वपूर्ण नोट्स रखे थे। दिलचस्प बात यह है कि व्हिस्लर शुरू-शुरू में इस अज्ञात भारतीय से काफी चिढ़ गए थे। द स्टडी ऑफ इंडियन बर्ड्स में व्हिस्लर ने उल्लेख किया कि ग्रेटर रैकेट-टेल ड्रोंगो की लंबी पूँछ में आंतरिक फलक पर वेबिंग की कमी होती है।[17] सलिम अली ने लिखा कि इस तरह की अशुद्धियाँ प्रारंभिक साहित्य से चली आ रही हैं और सुस्पष्ट किया कि मेरूदंड के मोड़ के बारे में यह गलत था।[18] शुरू-शुरू में व्हिस्लर एक अज्ञात भारतीय द्वारा गलत सर्वेक्षण से नाराज हुए और जर्नल के संपादक एस॰एच॰ प्रेटर और सर रेगीनाल्ड स्पेंस को "घमंड" से भरा हुआ एक पत्र लिखा। बाद में व्हिस्लर ने फिर से नमूनों की जाँच की और न केवल अपनी त्रुटि को माना[19] बल्कि अली के वे एक करीबी दोस्त भी बन गए।[20]
व्हिस्लर ने सलिम का परिचय रिचर्ड मेनर्टज़ेगन से भी करवाया और दोनों ने मिलकर अफगानिस्तान में अभियान किया। हालाँकि सलिम के बारे में मेनर्टज़ेगन के विचार भी आलोचनात्मक थे लेकिन वे भी दोस्त बन गए। सालिम अली ने मेनर्टज़ेगन के पक्षी कार्यों में कुछ भी ख़ास नहीं पाया लेकिन बाद के कई अध्ययनों में कपटता को पाया गया। मेनर्टज़ेगन सर्वेक्षण के दिनों से डायरी लिखा करते थे और सालिम अली ने अपनी आत्मकथा में उसे पुनः प्रस्तुत किया है:[21] एक खतरा थी। महत्त्वपूर्ण क्षण रतफिऊयड है मेरा ब्लॉग बालि ने कहा था ना कर दे कि रायगढ़ में एक युवक मंडराता तिरुपति घर में घछघत