Hindi, asked by legendarycharizard, 2 months ago

अपने राष्ट्र समाज तथा पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करते हुए कोई कविता लिखिए​

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Answered by vaishnavibarad8
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Answer:

पर्यावरण एवं प्रकृति एक ही सीक्के के दो पहलू हैं। जनसामान्य के लिए जो प्रकृति है, उसे विज्ञान में पर्यावरण कहा जाता है। ‘परी+आवरण’ यानी हमारे चारों ओर जो भी वस्तुएं हैं, शक्तियां, जो हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं, वे सभी पर्यावरण बनाती हैं। मोटे तौर पर जल, हवा, जंगल, जमीन, सूर्य का प्रकाश, रात का अंधकार और अन्य जीव जंतु सभी हमारे पर्यावरण के भिन्न तथा अभिन्न अंग है। जीवित और मृत को जोड़ने का काम सूर्य की शक्ति करती है।

प्रकृति जो हमें जीने के लिए स्वच्छ वायु, पीने के लिए साफ शीतल जल और खाने के लिए कंद-मूल-फल उपलब्ध कराती रही है, वही अब संकट में है। आज उसकी सुरक्षा का सवाल उठ खड़ा हुआ है। यह धरती माता आज तरह-तरह के खतरों से जूझ रही है।

लगभग 100-150 साल पहले धरती पर घने जंगल थे, कल-कल बहती स्वच्छ सरिताएं थीं। निर्मल झील व पावन झरने थे। हमारे जंगल तरह-तरह के जीव जंतुओं से आबाद थे और तो और जंगल का राजा शेर भी तब इनमें निवास करता था। आज ये सब ढूंढे नहीं मिलते, नदियां प्रदूषित कर दी गई हैं।

राष्ट्रीय नदी का दर्जा प्राप्त गंगा भी इससे अछूती नहीं है। झील झरने सूख रहे हैं। जंगलों से पेड़ और वन्य जीव गायब होते जा रहे हैं। चीता तथा शेर हमारे देश से देखते-ही-देखते विलुप्त हो चुके हैं। अभी वर्तमान में उनकी संख्या अत्यंत ही कम है। सिंह भी गिर के जंगलों में हीं बचे हैं। इसी तरह राष्ट्रीय पक्षी मोर, हंस कौए और घरेलू चिड़ीयों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यही हाल हवा का है। शहरों की हवा तो बहुत ही प्रदूषित कर दी गई है, जिसमें हम सभी का योगदान है।

महानगरों की बात तो दूर हम छत्तीसगढ़ में हीं देखें तो रायगढ़, कोरबा, रायपुर जैसे मध्यम आकार के शहरों की हवा भी अब सांस लेने लायक नहीं हैं। आंकड़े बताते हैं की वायु में कणीय पदार्थ की मात्रा जिसे आर.एस.पी.एम. (R.S.P.M.) कहते हैं, में रायगढ़ का पूरे एशिया में तीसरा स्थान पर आना चिंता की बात है। इस सूची में कोरबा और रायपुर भी शामिल हैं।

शहरी हवा में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें घुली रहती हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा हाइड्रो कार्बन के साथ बढ़ रही है। वहीं खतरनाक ओजोन के भी वायुमंडल में बढ़ने के संकेत हैं। विकास की आंधी में मिट्टी की भी मीट्टी-पलीद हो चुकी है। जिस मिट्टी में हम सब खेले हैं, जो मीट्टी खेत और खलीहान में है, खेल का मैदान है, वह तरह-तरह के कीटनाशकों को एवं अन्य रसायनों के अनियंत्रित प्रयोग से प्रदूषित हो चुकी हैं।

खेतों से ज्यादा-से-ज्यादा उपज लेने की चाह में किए गए रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण वर्तमान में पंजाब एवं हरियाणा की हजारों हेक्टेयर जमीन बंजर हो चुकी है। हमारे कई सांस्कृतिक त्योहार एवं रिती-रिवाज भी पर्यावरण हितैषी नहीं हैं। दीपावली और विवाह के मौके पर की जाने वाली आतीशबाजी हवा को बहुत ज्यादा प्रदूषित करती है। होली भी हर गली-मोहल्ले की अलग-अलग न जलाकर एक कॉलोनी या कुछ कॉलोनियां मिलकर एक सामूहिक होली जलाएं तो इससे ईंधन भी बचेगा और पर्यावरण भी कम प्रदूषित होगा।

Explanation:

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Answered by tushargupta0691
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Answer:

समय की रेत ने भय बना दिया है

ऊँचे पर नीला आसमान अब साफ नहीं है

तारे चमकीले थे जहाँ से आए थे

अब धुँधली, धुंधली, प्रदूषण की धुंध

क्रिस्टल हमारे पानी को साफ करता है चमकीला

मछलियाँ प्रचुर मात्रा में, नदियाँ प्रवाहित

समुद्र के फर्श रेतीले सफेद

अब अटे पड़े, भूरे, प्रदूषण की दुर्दशा

पेड़ ऊँचे ऊँचे ऊँचे

चड्डी बारंबार प्यार का इज़हार किया

अनदेखी जगहों से चहकते पंछी

गया, कागज प्रदूषण की टीम में शामिल

कोई अकेले प्रदूषण को दोष नहीं दे सकता

जैसा कि वे कहते हैं, आप वही काटते हैं जो आपने बोया है

तो आइए हम एक बेहतर बीज बोएं

पुरानी जड़ों को फाड़ दो, खेती करो, खरपतवार करो

जो मुफ्त में दिया गया है उसकी रक्षा करें

हमारा पानी, आसमान, वन्य जीवन और पेड़

एक बार जब वे चले गए, तो आप यह न कहें

अपने आप को उस घातक दिन की चेतावनी समझो I

#SPJ2

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