Hindi, asked by negibhumika14, 23 days ago

अपने देशवासियों को कोरोनावायरस se satark करते हुए संदेश​

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Answered by rahulpachowal
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इस वायरस के कारण जहां विश्व में 2 लाख के करीब लोगों की मौत हो चुकी हैं वहीं भारत में कोरोना के परीक्षणों की रफ्तार बढ़ी है। कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा समय से पहले महामारी से बचने के लिए उठाए गए कदमों के कारण भारत की स्थिति अभी तक अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी जैसे अन्य विकसित देशों से बेहतर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी क्षमता व दृढ़ संकल्प और दूरदर्शिता के कारण अगर विश्व में एक अलग पहचान बनाने और भारत कोरोना विरुद्ध लड़ाई में विश्व का नेतृत्व करता दिख रहा है तो इसके पीछे भी कोरोना वायरस ही कारण है। हर बुराई में जिस तरह अच्छाई छिपी होती है ठीक इसी तरह कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप आज जल, थल और नभ एक तरह से प्रदूषण मुक्त ही दिखाई दे रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण ही मनुष्य को समझ लगने लगी है कि प्रकृति के साथ अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए जिस तरह छेड़छाड़ हुई है उसका ही खामियाजा आज दुनिया भुगत रही है।

कोरोना वायरस आज विश्व में मील का पत्थर साबित हो रहा है। कल तक जो देश अपने को महाशक्ति के रूप में देखते व समझते थे आज कोरोना वायरस के बाद बेरोजगारी वहां सबसे अधिक हो गई है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देखें तो स्पष्ट होता है कि अविकसित तथा विकासशील देशों के नागरिकों की कोरोना वायरस से लडऩे की क्षमता विकसित देशों के नागरिकों से अधिक है। कोरोना वायरस ने एक और बात साबित कर दी है कि केवल भौतिक सुख-सुविधा के साथ जीवन सुखमयी नहीं हो सकता। आप का संयम, संकल्प और संतुष्टि ही आप के जीवन को सुखी बनाती है। आज संकट की इस घड़ी में बड़े बंगले, गाडिय़ां और कारखाने बेमतलब से लग रहे हैं। अपनी चादर से बाहर पैर फैलाने वालों की स्थिति दयनीय होती जा रही है और जिसने चादर के अंदर ही अपने पांव रखे थे वह आज अपने को सुखी मान रहा है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मात्र भौतिक सुख-सुविधा ही जिसके लिए जीवन की प्राथमिकता थी आज वह अधिक कष्ट में है और जिसने जीवन को प्रभु की देन माना व अपना कर्म करने में संतुष्ट रहा वह आज भी सुखी व शांत है। वह कोरोना वायरस को भी प्रभु की देन ही मान रहा है और अपने जीवन की बागडोर प्रभु पर छोडक़र एक तरह से भय मुक्त और संतुष्ट है। कोरोना वायरस ने विश्व भर में परिवार के महत्व को एक बार पुन: स्थापित किया है। पारिवारिक रिश्ते और मर्यादाओं के महत्व पर मानव को पुनर्विचार करने के लिए भी मजबूर किया है। आज कोरोना के भय के कारण जहां संयुक्त परिवारों के महत्व का एहसास हो रहा है वहीं खुली जीवन शैली जिसमें लिव-इन जैसी जीवनशैली की कमजोरी भी समाज के सामने आ रही है। परिवारों में बड़े-छोटे कैसे एक-दूसरे के पूरक हैं इस बात का भी पता चल रहा है। साथ ही परिवार की कमजोरियां भी बाहर आ रही हैं।

कोरोना वायरस के कारण ही आज विश्व भर में भारतीय जीवनशैली, भारतीय संस्कृति का सकारात्मक पहलू सामने आ रहा है। वृक्षों, नदियों और पशु-पक्षियों के साथ तालमेल बिठाकर ही नहीं बल्कि उनकी पूजा करने के पीछे की जो सोच या भाव थे आज भारतीयों के यह भाव दुनिया को समझ आ रहे हैं। कोरोना वायरस ने साबित कर दिया है कि युगों पहले हमारे पूर्वजों ने दुनिया को जो संदेश दिया था कि ‘परमार्थ ही धर्म है और स्वार्थ अधर्म है’ सत्य है। कोरोना वायरस की लड़ाई पर विजय भी परमार्थ के रास्ते पर चलकर ही होगी। वेदों में प्रार्थना है कि सभी निरोगी रहें, सभी सुखी रहें, सभी ओर शांति रहे आज भी, इन्हीं बातों को स्वीकार कर हमें सरबत के भले के लिए कर्म करना होगा। तभी हमारा वर्तमान और भविष्य सुरक्षित होगा, यह संदेश भी कोरोना वायरस दे रहा है। इस संदेश को सुन व समझ कर चलना आप पर ही निर्भर है। लेकिन याद रखें आप के निर्णय से केवल आप का ही नहीं बल्कि आपके परिवार, समाज तथा देश व दुनिया का वर्तमान और भविष्य भी प्रभावित होने वाला है। इसलिए निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें, सोच समझकर निर्णय लें ताकि हमारी भावी पीढिय़ों को कोरोना वायरस जैसी महामारी का सामना न करना पड़े।

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