Hindi, asked by natasha435, 7 months ago

अपने विचार में मानव और समाज किस प्रकार एक - दूसरे के पूरक हैं ? उदाहरण सहित बताइए ।​

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Answered by jaidansari248
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Answer:

व्यक्ति और समाज के संबंधों को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रकार के विचार आते रहे हैं। इनके प्रमुख रूप में दो भागों में बांटा गया है।

-सामाजिक समझौता का सिद्धांत

-समाज का अवयवी सिद्धांत

सामाजिक समझौता या संविदा का सिद्धांत

इस विचारधारा के अनुसार व्यक्तियों के द्वारा समाज जैसे संगठन का निर्माण जानबूझकर किया गया है। चूंकि इसका निर्माता स्वयं मनुष्य है। अत: समाज निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य मानव हितों की रक्षा करना है। दूसरे शब्दों में इस दृष्टिकोण के समर्थक समाज की तुलना में व्यक्ति को महत्व देते हैं। साथ ही इस दृष्टिकोण के समर्थक यह भी मानते हैं कि व्यक्ति समाज का एक निर्माता है, अत: सामाजिक निर्णय एवं व्यक्तिगत निर्णय के बीच भेद हो सकता है एवं सामाजिक निर्णय के विरुद्ध व्यक्ति को निर्णय लेने का अधिकार है।

जॉन लॉक का कथन

जॉन लॉक के शब्दों में व्यक्ति जन्म से, स्वभाव से स्वतंत्र, स्वच्छंद और समान है। उसकी इच्छा के बिना कोई राजनीतिक सत्ता उसे दबा नहीं सकती। वह दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर सहयोग कर समुदाय या समाज बनाने का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है।

प्रमुख विचारक टी हॉब्स, जेजे रूसो आदि भी इस दृष्टिकोण के समर्थक थे।

समाज का अवयवी सिद्धांत

अवयवी सिद्धांत जिन मान्यताआें पर आधारित है कि वह सामाजिक समझौते के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति प्रधान है, यह समाज का निर्माता है और वह समाज पर हावी रहता है। किन्तु अवयवी सिद्धांत के अनुसार समाज प्रधान है और व्यक्ति उस पर निर्भर करता है। अत: समाज को व्यक्ति पर हावी रहना है।

अवयवी सिद्धांत पर प्रारंभिक विचार

समाजशास्त्र के कुछ प्रारंभिक विद्वानों ने इसे स्पष्ट करने के लिए समाज की तुलना शारीरिक अवयव से की। उन्होंने यह विवेचन किया कि जिस प्रकार शरीर और उसके विभिन्न अंग मिलकर कार्य करते हैं, उसी प्रकार समाज की संरचना भी अवयवी है। समाज में उसी प्रकार की व्यवस्था है, जिस प्रकार समाज के अलग-अलग अंग हैं। यह पूरा शरीर अवयवों की समन्वित इकाई है। समाज की व्यवस्था भी इसी ढंग की है। व्यक्ति उसके अंगमात्र हैं जो मिलकर समाज का निर्माण करते हैं।

हर्बर्ट स्पेंसर की व्याख्या : संरचना आधारित

समाज के अवयवी सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या सर्वप्रथम ब्रिटिश समाजशास्त्री हर्बर्ट स्पेंसर ने दी। उन्होंने यह प्रमाणित करने की कोशिश की कि जिस प्रकार शरीर के अंग अलग-अलग कार्य करते हैं। उसी तरह विभिन्न व्यक्ति अलग-अलग ढंग से कार्य करते हैं। हृदय, यकृत, गुर्दा, एवं जिगर ये सब अन्य अंगों की तुलना में शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं। महत्वपूर्ण इस अर्थ में कि इन अंगों के क्षय होने पर शरीर का भी क्षय हो जाता है, जबकि हाथ या पैर कट जाने पर भी शरीर जिन्दा रहता है। उसी तरह से समाज में कुछ व्यक्ति मिलकर समाज के अंग के रूप में जिन्दा रहते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे कि शरीर के विभिन्न अंग।

हर्बर्ट स्पेंसर की व्याख्या: विकासक्रम आधारित

स्पेन्सर ने कहा है कि अन्य जीवों तरह समाज का भी जन्म होता है। कालक्रम में वह प्रौढ़ होता है और उसका अंत भी होता है। उदाहरणस्वरूप पुराने समाज का अंत और उसके बाद नए आधुनिक समाज का जन्म हुआ ओर अब विकास भी हो रहा है। इसी प्रसंग में स्पेन्सर ने यह भी कहा कि शरीर के निर्माण में कोशिकाओं और ग्रंथियों का महत्व है। कालक्रम में कोशिकाओं और ग्रंथियों का क्षय होता है। उनकी जगह नई कोशिकाएं और ग्रंथियां निर्मित होती हैं समाज की कोशिका है व्यक्ति, समाज के अंग एवं व्यवस्थाएं हैं समितिया ंसवं संस्थाएं। समाज की कोशिका यानी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो साथ साथ नई कोशिकाओं यानी व्यक्तियों का जन्म होता रहता है।

अवयवी सिद्धांत के निष्कर्ष

संक्षेप में अवयवी सिद्धांत का कहना है कि

-व्यक्ति समाज का एक अंग मात्र है।

-समाज के बाहर व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है

-उसे समाज के नियमों, मूल्यों एवं आदर्शों के अनुकूल ही चलना है।

इस तर्क का निचोड़ यह है कि समाज सर्वोपरि है।

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