अपने विद्यालय में मनाए गए 15 अगस्त समारोह का वृत्तांत लेखन लिखो।
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भारत के इतिहास में 15 अगस्त बड़ा महत्त्वपूर्ण दिन है । कई शताब्दियों की गुलामी के बाद इसी पुनीत दिन हमारा देश आजाद हुआ था । इस दिन भारत-भूमि से अंग्रेजों ने डेरा-तम्बू लेकर कूच कर दिया था ।
तैयारी:
हर वर्ष यह दिन हम अपने स्कूल में बड़े उत्साह से मनाते हैं । सदा की भांति इस वर्ष भी स्वतन्त्रता दिवस समारोह की भव्य तैयारिया की गई । हम सभी इस समारोह में उत्साहपूर्वक भाग लेने को सटक थे । वाइस प्रिंसि पल ने इस समारोह का कार्यक्रम तैयार किया ।
समारोह का कार्यक्रम:
15 अगस्त को बड़े सवेरे हम सभी लोग पानी की टंकी के निकट बस अड्डे के पास रामलीला मैदान में एकत्र हुए । कुछ देर बाद शिक्षक भी आ गये । हम लोगों को चार दलों बांट दिया गया । प्रत्येक दल के साथ 6-6 शिक्षक थे । यह दल शहर के अलग-अलग भागों में प्रभात फेरियां लगाने के लिए निकल पड़े ।
रास्तेभर हम राष्ट्रीय गान गाते रहे तथा ‘महात्मा गांधी की जय’ भारत माता की जय जैसे नारे लगाते रहे । इस तरह गाते-बजाते और अपनी राष्ट्रीय भावनाओं को व्यक्त करते हुए हम लोग लगभग साढ़े सात बजे स्कूल पहुंच गए । स्कूल में एक लम्बा सफेद खम्बा गाड़ा गया था, जिस पर राष्ट्रीय ध्वज बंधा था ।
हम सब उसी खम्भे के चारों ओर खड़े हो गए । हम लोगों को अपनी-अपनी कक्षा के बालकों के साथ खड़ा होना था । सभी लड़के खाकी वर्दी में थे । खाकी वार्दी में पंक्तिबद्ध खड़े बालक देश पर कुर्बान होने वाले सैनिकों की टुकड़ी से लग रहे थे ।
शिक्षक हमारे पीछे खड़े थे । प्रिंसिपल के अनुरोध पर हमारे स्कूल के सस्थापक ने जो एक संत हैं, झण्डा फहराने का काम स्वीकार कर लिया । वे बड़े प्रसन्न दीख रहे थे । ठीक आठ बजे झण्डा फहराया गया । हम सब झण्डे की सलामी देने के लिए सावधान मुद्रा में खड़े रहे ।
ध्वजा-रोहण समारोह के बाद राष्ट्र-गान ‘जन-मन-गण’ गाया गया । स्काउटों के बैण्ड ने राष्ट्रधुन बजाई । सस्थापक तथा प्रिसिपल ने संक्षिप्त भाषण दिए । उन्होने अपने भाषण में स्वतन्त्रता दिवस के महत्त्व और देश के प्रति हमारे कर्त्तव्य पर प्रकाश डाला । इसके बाद रोहण समारोह समाप्त हुआ ।
इसके बाद प्रिंसिपल ने हम लोगों को खेल के मैदान मे एकत्रित होने को कहा । वहां कुछ खेलकूद प्रतियोगिताओं का प्रबन्ध किया गया था । यह खेल बड़े उत्साहपूर्वक खेले गए । जिन लोगों को विभिन्न खेलकूदो में प्रथम व द्वितीय स्थान मिला, उन्हें संस्थापक महोदय ने पुरस्कार दिए ।
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