अपठित गद्यांश 1x5=5
यदि मनुष्य और पशु के बीच कोई अंतर है तो केवल इतना कि मनुष्य के भीतर विवेक है और पशु विवेकहीन है। इसी विवेक के कारण मनुष्य को यह बोध रहता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। इसी विवेक के कारण मनुष्य यह समझ पाता है कि केवल खाने-पीने और सोने में ही जीवन का अर्थ और इति नहीं। केवल अपना पेट भरने से ही जगत के सभी कार्य संपन्न नहीं हो जाते और यदि मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल इसी चीज का हिसाब रखने के लिए नहीं कि इस जगत ने उसे क्या दिया है और न ही यह सोचने के लिए कि यदि इस जगत ने उसे कुछ नहीं दिया तो वह इस संसार के भले के लिए कार्य क्यों करे। मानवता का बोध कराने वाले इस गुण ‘विवेक’ की जननी का नाम ‘शिक्षा’ है। शिक्षा जिससे अनेक रूप समय के परिवर्तन के साथ इस जगत में बदलते रहते हैं, वह जहाँ कहीं भी विद्यमान रही है सदैव अपना कार्य करती रही है। यह शिक्षा ही है जिसकी धुरी पर यह संसार चलायमान है। विवेक से लेकर विज्ञान और ज्ञान की जन्मदात्री शिक्षा ही तो है। शिक्षा हमारे भीतर विद्यमान वह तत्त्व है जिसके बल पर हम बात करते हैं, कार्य करते हैं, अपने मित्रों और शत्रुओं की सूची तैयार करते हैं, उलझनों को सुलझनों में बदलते हैं। असल में सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को ही ‘शिक्षा’ कहते हैं। शिक्षा उन तथ्यों का तथा उन तरीकों का ज्ञान कराती है जिन्हें हमारे पूर्वजों ने खोजा था-सभ्य तथा सुखी जीवन बिताने लिए।
आज यदि हम सुखी जीवन बिताना चाहते हैं तो हमें उन तरीकों को सीखना होगा, उन तथ्यों को जानना होगा जिन्हें जानने के लिए हमारे पूर्वजों ने निरंतर सदियों तक शोध किया है। यह केवल शिक्षा के द्वारा ही संभव है।
प्रश्न-(i)- प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
गद्यांश की उचित शीर्षक है-‘शिक्षा और विवेक’।
मनुष्य और पशु
मित्र और शत्रु
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bro please givw answers also
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हमें दिए गए गद्यांश का शीर्षक बताना है।
दिए गए गद्यांश का उचित शीर्षक होगा " मानव व पशु में अंतर " अथवा " शिक्षा का महत्व " ।
- उपुर्युक्त गद्यांश में मानव व पशु में अंतर बताया गया है। लेखक कहता है कि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है तथा पशु विवेकहीन होता है। मनुष्य के इसी गुण के कारण उसे यह बोध होता है कि क्या अच्छा है व क्या बुरा।
- मनुष्य को इसी विवेकशीलता के कारण अपने जीवन का उद्देश्य ज्ञात है, उसे पता है कि यह जीवन केवल खाने पीने व सोने के लिए नहीं मिला। केवल पेट भरने से इस सृष्टि के सारे कार्य नहीं हो जाते ।मनुष्य का जन्म इसलिए नहीं हुआ कि हम यह हिसाब लगाए कि इस संसार ने हमें क्या दिया। हमें यह भी नहीं सोचना है कि यदि इस संसार ने हमें कुछ नहीं दिया तो हम भी इस संसार के लिए कुछ क्यों करें?
- उसी गुण का नाम शिक्षा है। शिक्षा के कारण ही यह संसार चल रहा है। शिक्षा के कारण ही हम समझ पाते है कि कौन शत्रु है व कौन मित्र है।
- यदि हमें सुखी होना है तो अपने पूर्वजों के तरीके अपनाने पड़ेंगे जो उन्होंने हमें बताएं थे।
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