अपठित गद्यांश अथवा अपठित काव्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
18. जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या घर बना लेती है वह उन चीजों से आनन्द नहीं उठाता जो उसके पास मौजूद हैं बल्कि उन वस्तुओं से दुख उठाता है जो दूसरों के पास मौजूद हैं। वह अपनी तुलना दूसरों से करता रहता है और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर डंक मारते रहते हैं। डंक के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर ईर्ष्यालु मनुष्य करे भी तो क्या! आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है। ईर्ष्या का यही अनोखा वरदान है।
प्रश्न - (1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक चुनिए। (2) ईर्ष्यालु व्यक्ति दुःखी क्यों रहता है ?
(3) दाह' और लाचार' शब्द के अर्थ लिखिए।
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प्रश्न - (1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक चुनिए।
उत्तर : ईर्ष्या मनुष्य को बर्बाद कर देता है |
(2) ईर्ष्यालु व्यक्ति दुःखी क्यों रहता है ?
उत्तर : ईर्ष्यालु व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है , क्योंकि वह हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करता रहता है और ईर्ष्या करता रहता है | ऐसे स्वभाव से वह जीवन में कुछ नहीं कर पाता है | वह दूसरों की कामयाबी से दुखी होता रहता है और अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है | वह हमेशा दुखी रहता है , ईर्ष्या के कारण वह गलत रास्ते में चल पड़ता है | वह अपने आप को लाचार और बेबस समझ लेता है औरहमेशा सुखी रहता है |
(3) दाह' और लाचार' शब्द के अर्थ लिखिए।
उत्तर : दाह : जलन |
लाचार : असहाय, बेबस, मजबूर |
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