अपठित गद्यांश
सदाचार के कुछ सामान्य नियम है । सत्यवादिता सदाचारी का प्रथम लक्षण है । सदाचारी व्यक्ति कभी अपने जीवन में झूठ को स्थान नहीं देते हैं । वह अपने परिश्रम की कमाई खाते हैं । उनका जीवन सादा और विचार उच्च होते हैं । वह सांसारिक भोगों से कोसों दूर रहते हैं। सदाचारी व्यक्ति कभी अपना समय व्यर्थ नहीं करते । उनका जीवन नियमित एवं संयमित होता है । वह किसी भी काम को कल के सहारे नहीं छोड़ते अपना काम स्वयं ही करते हैं। जहां तक संभव होता है वे प्रत्येक व्यक्ति के साथ मधुर व्यवहार करते हैं । इससे वह सबके प्रिय बन जाते हैं। ईश्वर की पूजा अर्चना में भी सर्वोपरि सदाचार आता है । सदाचारी अपने इंद्रियों को वश में रखते हैं । क्रोध लोभ ईर्ष्या निंदा आदि सदाचार के दुश्मन हैं ,जो इन्हें त्याग देते हैं वही सच्चे सदाचारी कहलाते हैं । सदाचार के अभाव में धन संपत्ति वैभव या अन्य उपलब्धियां निरर्थक हो जाती है। कहा भी गया है कि सदाचार के अभाव में विद्या और धन अंधे हैं एवं ऐसा धन और ऐसी विद्या संसार के लिए हानिकारक है । आँख का अंधा और गांठ का पूरा कभी समाज में प्रतिष्ठा का आदर प्राप्त नहीं कर पाता । यही कारण था कि रावण जैसा धनवान पराक्रमी और विद्वान सदाचार के अभाव में आदर का पात्र नहीं बन सका। ठीक इसके विपरीत राम अपने सदाचार के सहारे ही सब के आदर्श बन गए।
1–निम्नलिखित में से कौन सा गुण सदाचारी व्यक्ति का नहीं है? *
1 point
सादा और उच्च विचार
नियमित एवं संयमित जीवन
ऐशो आराम का जीवन
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gsubsjsjdndjhdfjguhiyjhu bfughhguhtunubuyh hjhhhubughfhr well some fighting too
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1- aisho aaram ka jeevan
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