अपठित गद्यांश व्यक्ति समाज की इकाई जरूर है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति मिलकर समाज नहीं बनते I जो ऐसा कहता है , वह बहुत ही स्पष्ट सत्य से इंकार करता है, व्यक्ति- व्यक्ति मिलकर तो भीड़ बनती है। ईंट मकान कीठ इकाई जरूर है लेकिन ईंट-ईंट मिलकर मकान नहीं ढेर बनता है। असल में मकान बनाता है ईंट-ईंट के बीच का संबंध, वह क्रम जिससे आपने उन्हें परस्पर संबंध दिया है तभी तो ईंट-ईंट मिलकर कभी दीवार बनाती है, कभी मीनार व्यक्ति-व्यक्ति का संबंध समाज बनाता है। संबंध ही वह कड़ी है जो व्यक्ति और समाज के अस्तित्व को, विकास और प्रगति को सार्थक करता है जहाँ यह संबंध बिगड़ा कि दोनों एक-दूसरे को फाड़ खाने को दौड़े। प्रतिदिन परिवर्तित होते व्यक्ति और समाज के संबंध की यह कड़ी ही आज गड़बड़ा गई है। जो भी हो, यह सत्य है कि व्यक्ति की सार्थकता 'सिमैट्री' (सुडौलपन) में जहाँ-तहाँ गढ़े 'स्मृति लेख' लिखे खम्भों या सिरहानों की तरह क्रमहीन ढंग से खड़े रहने में नहीं, एक स्वस्थ क्रम में समाज बन जाने में है। क्योंकि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। संसार का प्रत्येक प्राणी किन्हीं विशेष संबंधों में ही जीता है।
Q) गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक चुनिए।
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व्यक्ति का संसार में आत्मीय संबंध
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