अपठद् योऽखिला विद्याः, कलाः सर्वा अशिक्षत्। अजानात् सकलं वेद्यं, स वै योग्यतमो न : hindi meaning
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माता गुरुतरा भूमे खात्यितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात्।।
इस श्लोक का अर्थ है हमारा धरती माता भूमि से भरी होती है , यह सबसे सबसे श्रेष्ठ होती है । पिता आकाश से भी ऊँचा होता है , मन वायु से भी तेज़ चलता है | मनुष्य शरीर के लिए चिन्ता करना सबसे अधिक हानिकारक होती है |
सर्व परवशं दुःखं सर्वम् आत्मवशं सुखम् ।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।।
इस श्लोक का अर्थ है , दूसरों के वेश में सारा दुःख होता है , और अपने वश में सब कुछ सुख होता है | हमें अपने जीवन में सुख-दुःख के लक्षण जनाना चाहिए |
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम)
इस श्लोक का अर्थ है , जो व्यक्ति स्वभाव से विनम्र होते है , बडो का अभिवादन वह इज्ज़त करते है तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करते है | उस मनुष्य की आयु , कीर्ति और बल, विद्या ये चारों में सदैव वृद्धि होती है |
पडदोषाः पुरुषणेह हातव्या भूतिमिच्छता
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधः आलस्य दीर्घसूत्रता।।4।।
इस श्लोक का अर्थ है , मनुष्य अपने आप को खुद बर्बाद करता है | मनुष्य के 6 लक्षण होते है , नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत यह मनुष्य को बर्बाद करता है |
यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत् ।।
इस श्लोक का अर्थ है : जिस कर्म के करने से मनुष्य की आत्मा को प्रसन्नता मिलती है और सुकून मिलता है | मनुष्य को वही कर्म करने चाहिए | जिस कार्य को करने में संतुष्टि में न हो हमें वह कार्य नहीं करना चाहिए |