Hindi, asked by shauryabist01, 9 months ago

Apna anpna bhagya Kahani ka saransh aur sandesh ?

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Answered by vanshika1122
3

Answer:

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Explanation:

जैनेंद्र प्रेमचंद-परम्परा के प्रमुख साहित्यकारों में एक प्रसिद्‌ध नाम है। इन्होंने उच्चशिक्षा काशी विश्वविद्‌यालय से प्राप्त की। सन्‌ 1921 ई० में पढ़ाई छोड़कर, गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। नागपुर में इन्होंने राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में भी कार्य किया। इनकी प्रथम कहानी ’खेल’ विशाल भारत पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1929 में इनका पहला उपन्यास ’परख’ प्रकाशित हुआ जिस पर उन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार भी मिला। जैनेंद्र ने अपनी रचनाओं में पात्रों के चरित्र-चित्रण में सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि का परिचय दिया है। जैनेंद्र कुमार की भाषा सहज है, पर जहाँ विचारों की अभिव्यक्ति का मामला आता है, उनकी भाषा गम्भीर हो जाती है। इनकी भाषा में अरबी, फ़ारसी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रमुख रचनाएँ - फाँसी, जयसंधि, वातायन, एक रात, दो चिड़ियाँ, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, सुखदा आदि।

कठिन शब्दार्थ

निरुद्‌देश्य - बिना किसी उद्‌देश्य के

सनक - धुन, एकाएक मन में उठनेवाला विचार

कुढ़ना - चिढ़ना

प्रकाश-वृत्त - रोशनी का घेरा

झुर्रिया - सिकुड़न

कोस - लगभग तीन किलोमीटर की दूरी

झुंझलाहट - चिड़चिड़ापन

मसहरी - मच्छरदानी

असमंजस - दुविधा

फिलासफी - उपदेश

निठुराई - कठोरता

बेहयाई - बेशर्मी

कफ़न - मृत शरीर को लपेटने के लिए कपड़ा

प्रेतगति से बढ़ना - बहुत तेज चाल से बढ़ना

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(1)

चुप-चुप बैठे तंग हो रहा था, कुढ़ रहा था कि मित्र अचानक बोले - "देखो वह क्या है?"

मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा - "होगा कोई"

प्रश्न

(i) लेखक तंग क्यों हो रहे थे?

(ii) दोनों मित्र किस शहर में और कहाँ बैठे हुए थे?

(iii) उन्होंने क्या देखा? लेखक ने क्यों कहा "होगा कोई"? पहली ही नज़र में यह कैसे पता चला कि लड़का बहुत गरीब है?

(iv) लड़के ने अपने बारे में लेखक को क्या-क्या बताया?

उत्तर

(i) लेखक तंग रहे थे, क्योंकि सर्दी का मौसम था और शाम हो रही थी। लेखक कड़ाके की ठंड से बचने के लिए होटल वापस लौट जाना चाहते थे पर उनका मित्र वहाँ से जाने की अपनी इच्छा जाहिर ही नहीं कर रहा था।

(ii) दोनों मित्र नैनीताल में थे और उस समय वे होटल से निकलकर घूमने के लिए आए थे। शाम का समय था और दोनों निरुद्‌देश्य घूमने के बाद सड़क के किनारे एक बेंच पर आकर आराम से बैठ गए थे।

(iii) लेखक ने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ की दूरी से एक काली छाया-मूर्ति उनकी तरफ बढ़ रही है लेकिन लेखक ठंड से परेशान हो चुके थे और होटल लौटना चाहते थे। उन्हें किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होंने अनमने भाव से कह दिया "होगा कोई"।

लेखक और उनके मित्र को पहली ही नज़र में ही लग गया कि लड़का बहुत गरीब है क्योंकि लड़का नंगे पैर, नंगे सिर और इतनी सर्दी में सिर्फ एक मैली-सी कमीज़ शरीर पर पहने हुए था। रंग गोरा था फिर भी मैल से काला पड़ गया था। उसके माथे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं।

(iv) लड़के ने लेखक को बताया कि वह एक दुकान पर नौकरी करता था, सारे काम के लिए एक रुपया और झूठा खाना मिलता था। अब वह नौकरी भी छूट गई थी। उसने बताया कि वह अपने साथी के साथ नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर गाँव से काम की तलाश में आया था। गाँव पर उसके कई भाई-बहन थे। माँ-बाप इतने गरीब थे कि उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। मालिक ने उसके साथी को इतना मारा कि उसकी मृत्यु हो गई है।

(2)

मोटर में सवार होते ही यह समाचार मिला। पिछली रात एक पहाड़ी बालक सड़क के किनारे - पेड़ नीचे ठिठुरकर मर गया।

प्रश्न

(i) किसे, कब और कौन-सा समाचार मिला ?

(ii) लेखक का मित्र उस पहाड़ी लड़के को कुछ देना चाहता था, पर क्यों नहीं दे पाया?

(iii) "आदमियों की दुनिया" ने उस लड़के के पास क्या उपहार छोड़ा ?

(iv)"अपना-अपना भाग्य" कहानी में कहानीकार ने किस समस्या को उजागर किया है ?

उत्तर

(i) जब लेखक और उसका मित्र वापस जाने की तैयारी कर रहे थे तब उन्हें यह समाचार मिला कि पिछली रात एक पहाड़ी लड़का सड़क के किनारे पेड़ के नीचे ठंड से ठिठुर कर मर गया।

(ii) लेखक का मित्र उस बेसहारा लड़के को कुछ पैसे देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपनी जेब में हाथ भी डाला लेकिन उन्हें वहाँ सिर्फ दस रुपए के नोट ही मिले, खुले पैसे नहीं थे। लेखक का मित्र बजट बिगड़ने के भय से उस लड़के को दस रुपए का नोट नहीं देना चाहता था।

(iii) आदमियों की दुनिया ने उस बेसहारा बालक के लिए मौत का उपहार छोड़ा था। दुनिया के कुछ निष्ठुर और स्वार्थी लोगों ने सिर्फ अपने बारे में सोचा और उस गरीब, बेसहारा और भूखे बालक को ठंड भरी रात में काले चिथड़ों की कमीज़ में मरने के लिए छोड़ दिया। यदि लेखक या उसके मित्र ने उसकी थोड़ी-सी मदद कर दी होती तो शायद उसकी ऐसी दुर्गति न होती।

(iv) "अपना-अपना भाग्य" के द्‌वारा लेखक जैनेंद्र कुमार ने सामाजिक असमानता की समस्या को प्रस्तुत किया है। समाज में गरीब और लाचार बालकों का शोषण दिखाना लेखक का उद्‌देश्य है। लेखक ने सामाजिक असमानता के प्रति तथाकथित बुद्‌धिजीवियों की उपेक्षापूर्ण उदासीनता एवं असमर्थता की मनोवृत्ति पर भी तल्ख व्यंग्य किया है। लेखक और उसका मित्र असहाय और बेबस बालक के प्रति अपनी जिज्ञासा तो प्रकट करते हैं लेकिन जब उसकी मदद करने का समय आता है तब वे अपनी हृदयहीनता और अमानवीयता का परिचय देते हैं। वे बालक की सहायता गर्म कपड़े देकर, खाना देकर, पैसे देकर या नौकरी की व्यवस्था करके कर सकते थे पर उन्होंने बालक की इस स्थिति को उसके भाग्य पर छोड़कर अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया।

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