Apna apna bhagya kahani ka uddesh
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“अपना-अपना भाग्य” कहानी महान कथाकार ‘जैनेंद्र’ द्वारा लिखित एक कहानी है।
इस कहानी में समाज के लोगों की दोहरी मानसिकता को उजागर किया है। समाज के संपन्न और समर्थ लोगों के अंदर व्याप्त संवेदनहीनता और निष्ठुरता पर करारा व्यंग्य किया है।
समाज के उच्च पदों पर आसीन तथा सर्व रूप से संपन्न तथाकथित बुद्धिजीवी जो समाज और गरीबों के उत्थान के लिये बड़ी-बड़ी बाते तो करते हैं परन्तु व्यवहारिक रूप से कुछ नही करते।
उनकी दया और सहानुभूति केवल बड़े-बड़े शब्दों के आडंबर तक ही सीमित है, और जब वास्तविक रूप से किसी गरीब असहाय की सहायता करने की बात आती है तो वो बहाना बनाकर बच निकलना चाहते हैं।
प्रस्तुत कहानी में एक अत्यन्त गरीब लड़का मुख्य पात्र है। जो गांव से भागकर आया काम-धंधे की तलाश में लेकिन जो नौकरी उसे मिली थी वो भी नौकरी छूट गयी है और उसके पास खाने के लिये कुछ नही और इस ठिठुरती ठंड में ढंग के कपड़े तक नही हैं।
समाज में कोई भी उसकी मदद नही करता और जब वो लड़का लेखक व उसके मित्र के पास आता है तो वो भी टाल जाते हैं।
अगली सुबह वो भूख व ठंड से ठिठुरकर मर जाता है।
यहां पर इस कहानी में लेखक का उद्देश्य समाज के लोगों की संवेदनहीनता और पाखंड को उजागर करना है।
जब लड़का लेखक और उसके मित्र के पास आया तो वो उसकी दशा देखकर उसकी वास्तव में व्यावहारिक रूप सहायता कर सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा नही किया और बस झूठी सहानुभूति दिखाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। और सारा दोष भाग्य पर मढ़ दिया।
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