Apne bachapan ke kisi aisi ghatna ka varnan kijiye jisse apko jiven ki nayi sikh mili ho ye apke bhavi jivan me kaise upyogi sidh ho sakti hai iska vivran dijiye
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बचपन की यादों का प्रत्येक के जीवन में विशेष महत्व है । जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं बचपन की यादें और भी प्रीतिकर लगती हैं । बचपन, व्यक्ति के जीवन की सर्वोतम काल ! बचपन में किसी तरह की कोई चिन्ता नहीं होती, कोई तनाव नहीं होता और कोई काम का बोझ भी नहीं होता ।
बच्चा संसार के कुत्सित वातावरण से बिल्कुल अछूता होता है । वह अपनी छोटी सी दुनिया में खाता है, पीता है, सोता है और खुश रहता है । बचपन के किस्सों को भुलाया नहीं जा सकता । यह यादें व्यक्ति के जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ती हैं । ऐसा ही मेरे साथ है ।
जब भी मैं बचपन को याद करता हूँ मन खुशी से भर उठता है । वह कितने सुनहरे दिन थे जो मैंने हँसते खेलते बिताये । अपने बचपन में मुझे कोई चिन्ता नहीं थीं । मैं र्निभीक हिरणों की तरह खुले मैदानों में दौड़ता फिरता था; प्रकृति की गोद में, उसके सौन्दर्य के आंचल में । कुछ ऐसी घटनायें हैं जो मेरे मस्तिष्क में अब भी ताजा है ।
जब मैं पाँच वर्ष का था तो मुझे टाइफाइड हो गया । उन दिनों चिकित्सा विज्ञान ने इतनी उन्नति नहीं की थी । उचित निदान के अभाव में मैं बिल्कुल दुबला हो गया । बहुत समय तक लगातार दवाई खाने के पश्चात ही मेरी तबियत में कुछ सुधार हुआ । डाक्टर ने मुझे किसी पहाड़ी स्थान पर ले जाने का परामर्श दिया । पिताजी मुझे शिमला लेकर गये ।
शिमला में बीते वह दिन कितनी मीठी यादों को अपने में समेटे हुये हैं । एक दिन मदारी अपने दो बन्दरों को लेकर हमारी गली में आया उसने बन्दरों के कई करतब दिखाकर हमारा मन मोह लिया । बन्दर का बन्दरिया से प्यार का इज़हार करना बन्दरिया का उससे शादी से इन्कार करना और बन्दर का रंगदार टोपी पहनकर अपने ससुर के घर जाना इन सब शरारतों ने हमें बहुत रोमांचित किया ।
मैंने मदारी के सभी करतबों का भरपूर आनन्द उठाया । एक अन्य घटना जो मुझे कभी नहीं भूलती वो मेरे तैरने से सम्बन्धित है । रविवार का दिन था । मैं अपने मित्रों के साथ पिकनिक मनाने ओखला गया । मेरे कुछ मित्र तैराकी में निपुण थे दुर्भाग्य से मुझे तैराना नहीं आता था ।
मेरे मित्र नदी में उतर गये एवं मुझे भी आने की जिद करने लगे । मैं जैसे ही नदी में उतरा तो पानी के तेज बहाव की चपेट में आ गया और दूर बह कर चला गया । मेरे डूबने के पूरे आसार थे किन्तु मेरे एक मित्र के साहस से मुझे जीवन दान मिला । वह मुझे निकाल कर वापिस नदी तट तक ले कर आया ।
मैं उस दिन हुये मौत से साक्षात्कार को कभी नहीं भूलूंगा । बचपन की वो शरारतें अब भी मेरे चेहरे पर मुस्कूराहटें ले आती हैं । लगता है काश ! वह मस्ती भरे दिन फिर वापिस आते । किन्तु वक्त पंख लगा कर उड़ जाता है और गया वक्त दोबारा नहीं आता ।
केवल समृतियाँ रह जाती हैं मन को बहलाने के लिये । यही वह बाल्यावस्था है जिसका वर्णन कवियों ने अपनी कविताओं में किया है । लेखकों और साहित्यकारों के वो बचपन के किस्से आज भी हमारा मनोरंजक करते हैं और दिल बहलाते हैं । शिवानी के बचपन का उसकी बिटिया के रूप में दोबारा लौट के आना किसे नहीं लुभायेगा ।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है बचपन के वे अदभुत दिन और अधिक याद आते हैं । मुझमें एक नये जीवन का संचार करते हैं । आज कल दूरदर्शन पर जावेद अख्तर साहब का एक तराना गूंजता है कोई मुझेसे ले लो यह सारी दौलत:
”मुझे लौटा दो वे बचपन के दिन
वो बचपन की यादें
वो कागज़ की कश्ती
वो लड़कपन की बातें…… ।
Hope it helps you
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