apne bachpan ki koi manmohak ghatna yad karke visthar se likho
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वल माँ ने जो कहा वही कह सकती हूँ । धीरे -घीरे समय बीता और मै ३-५ वर्ष का हो गया । इस समय की कुछ बीतें याद है मूझे , मेरे पापा अपने कंधे पर बैठा कर बाजार ले जाया करते थे , और मै इस तरह बैठा रहता मानो दूनिया का सबसे खूशी व्यक्ति मै ही हूँ । माँ के हाथो से भोजन करना , दूलार करना , सीने से लगाकर सूलाना , मनमोहक कहानियाँ सुनाना । आज भी याद आने पर खुशी के आँसू टपक परते हैं । धीरे -धीरे मे ६-८ वर्ष का हो गया । उफ, स्कुल जाना । ये काफी उबाउ काम था। क्योकि माँ हर रोज ५:०० बजे उठा देती थी। गूस्सा इतना आता था कि पूछो मत। खैर वो जो भी किया करती थी । मेरे भलाइ के लिये था ।लेकिन उस समय इतनी बुद्धी कहां , केवल खेल-खेल ,हा -हा -हा। मुझे याद है एक बार मैने खेलते वक्त एक दोस्त की हाथ तोङ दी थी। पापा ने बहूत पीटा था। लेकिन माँ के दूलार सारे दर्द छू मन्तर हो गया था । लेकिन रात को जब मे सोया था , पापा मेरे सिर पर अपने हाथ फेर रहे थे । शायद उन्हे अफसोस हो रहा था । क्योंकि मै उनके आँखो का तारा जो था। लेकिन उस दिन के बाद से मुझे याद नही है ,कि मैने पापा से दोबारा पिटायी खायी।
मेरे चाचा महाविद्यालय के शिझक है । इसिलिए मुझे चाचा के साथ भेज दिया । क्योंकि वो शिझक है , तो जाहिर सी बात है , पढने वाले ही उन्हे पसंद आएँगे ना , और मूझे न चाहते हुए भी पढना पङता था । वो हमेशा बूद्ध या गधा कहकर पूकारते थे ।
मूझे बिल्कूल अच्छा नही लगता था । इसिलिए मै घँटो पढा करता । मै अपने कझा मे हमेशा अव्वल आता था , तबपर भी चाचा कोइ-न -कोइ दोष निकाल हि देते थे । आज भी वो वैसे ही हैं । खैर मै अब समझने लगा हूं कि वो मूूझे केवल बेहतर नही उत्कृष्ट श्रेणी में देखना चाहते है।
मेरी माँ कहती है कि मै ज्यादा दोस्त बनाना पसँद नही करता था । मुझे भी ये सही लगता है , क्योंकि मुझे बचपन के देस्तो के बारें मे याद नही है ।
लेकिन फिर भी मै बहुत खुश रहता हूँ क्योंकि मैने अपने बचपन को माँ -पापा के साथ जीया है ।
Answer:
एक बार की बात है जब मैं कक्षा एक में पढ़ती थी। एक दिन जल्दबाजी के कारण मैं स्कूल को अपनी पेंसिल ले जाना भूल गई। कक्षा में पहुंचने के बाद जब बैग में देखा तो पता चला की मैं अपनी पेंसिल घर पर ही भूल आई हूं। मैं बहुत डर गई थी। मुझे डर लग रहा था कि मेरी अध्यापिका मुझे डांटे ना और मैं हड़बड़ाहट के कारण रोने लगी। बगल में बैठी हुई एक लड़की चुपचाप से मुझे देख रही थी। आकर उसने मुझसे पूछा की तुम क्यों रो रही हो। मेने उसको सब बताया की मैं घर से पेंसिल लाना भूल गई हूं। उसने मुझे एक मिनट इंतजार करने को बोला। वो अपने बैग के पास गई और उसमें से एक पेंसिल निकाल कर मेरे पास आई और बोली यह लो रख लो जब तक तुम्हें जरूरत हो यह तुम्हारी ही है। उसके बाद मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था और मैं बहुत खुश हुई । तब से लेकर आज तक हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं।
यह घटना मेरे लिए बहुत मनमोहक है क्योंकि इस घटना से मुझे एक सच्चे दोस्त की पहचान हुई।