Apne bachpan me hui ek ghatna ke bare me batao
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मैं करीब 8 साल की थी। तब मेरे घर के आगे एक पेट्रोल पंप था। उस पेट्रोल पंप पर सैकड़ों लोग अपनी अपनी गाड़ी में पेट्रोल डलवा कर मेरे घर से होकर जाते थे। एक दिन जब मैं स्कूल से घर आ रही थी तब मैंने उस पेट्रोल पंप के सामने किसी का पर्स गिरा हुआ पाया। यह पर्स किसी महिला का था। मैंने उसी टाइम उस महिला के पर्स को उठाकर अपने बैग में रख लिया और घर चली गई। कुछ समय बाद वहां एक महिला आई। वह पेट्रोल पंप के आदमियों से किसी चीज के बारे में पूछ रही थी और बहुत परेशान थी। मैं यह सब अपने घर के आंगन से देख रही थी, मेरे मन में डर था कि मैंने पर्स उठा लिया है। मैं चुपचाप पेट्रोल पंप की ओर खेलने के लिए गयी और वहां महिला की बात मुझे सुनने को मिली कि उसके पर्स में उसके घर के कागजात हैं। अगर वह कागजात नहीं मिलेगा तो वह बर्बाद हो जाएगी, उसे अपना घर खाली करना पड़ेगा। यह सब सुनकर मैं चुपचाप एक ही स्थान पर खड़ी हो गई। मेरे दिमाग में उस महिला के प्रति सहानुभूति झलक रही थी। कुछ समय बाद उस महिला की व्याकुलता को देखते हुए मैं घर गई और वह पर्स लाकर उस महिला को दे दी। वह महिला पर्स पाने के बाद बहुत खुश हुई और मुझे चॉकलेट के लिए पैसे देने लगी, मैंने उसका पैसा लेने से मना कर दिया और घर की ओर भागते हुए आ गई। घर में बैठे चुपचाप सोच रही थी कि अगर मैं पर्स नहीं उठाती या उस पेट्रोल पंप वाले को दे देती तो उस महिला को आसानी से उसका पर्स मिल जाता और वह इतना ज्यादा परेशान नहीं होती।
तो उस दिन मेरे को समझ में आया कि सड़क पर अगर कोई चीज गिरी हुई दिखे तो आपको उसे पुलिस को दे देना चाहिए या फिर उसके मालिक को वह चीज पहुंचाने का प्रयास करना चाहिये।