Hindi, asked by rahulrapole941, 9 days ago

Apne bade bujurg ke margdarshan mein Apne gaon ke aaspaas mein prachalit koi ek lokkatha likhiye yahan party pustak se Na Ho

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Answered by devatwalpiyush
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Teen Putle: Folk Tale in Hindi

तीन पुतले: लोक-कथा

महाराजा चन्द्रगुप्त का दरबार लगा हुआ था। सभी सभासद अपनी अपनी जगह पर विराजमान थे। महामन्त्री चाणक्य दरबार की कार्यवाही कर रहे थे।

महाराजा चन्द्र्गुप्त को खिलौनों का बहुत शौक था। उन्हें हर रोज़ एक नया खिलौना चाहिए था। आज भी महाराजा के पूछने पर कि क्या नया है; पता चला कि एक सौदागर आया है और कुछ नये खिलौने लाया है। सौदागर का ये दावा है कि महाराज या किसी ने भी आज तक ऐसे खिलौने न कभी देखें हैं और न कभी देखेंगे। सुन कर महाराज ने सौदागर को बुलाने की आज्ञा दी। सौदागर आया और प्रणाम करने के बाद अपनी पिटारी में से तीन पुतले निकाल कर महाराज के सामने रख दिए और कहा कि अन्नदाता ये तीनों पुतले अपने आप में बहुत विशेष हैं। देखने में भले एक जैसे लगते हैं मगर वास्तव में बहुत निराले हैं। पहले पुतले का मूल्य एक लाख मोहरें हैं, दूसरे का मूल्य एक हज़ार मोहरे हैं और तीसरे पुतले का मूल्य केवल एक मोहर है।

सम्राट ने तीनों पुतलों को बड़े ध्यान से देखा। देखने में कोई अन्तर नहीं लगा, फिर मूल्य में इतना अन्तर क्यों? इस प्रश्न ने चन्द्रगुप्त को बहुत परेशान कर दिया। हार के उसने सभासदों को पुतले दिये और कहा कि इन में क्या अन्तर है मुझे बताओ। सभासदों ने तीनों पुतलों को घुमा फिराकर सब तरफ से देखा मगर किसी को भी इस गुत्थी को सुलझाने का जवाब नहीं मिला। चन्द्रगुप्त ने जब देखा कि सभी चुप हैं तो उस ने वही प्रश्न अपने गुरू और महामन्त्री चाणक्य से पूछा।

चाणक्य ने पुतलों को बहुत ध्यान से देखा और दरबान को तीन तिनके लाने की आज्ञा दी। तिनके आने पर चाणक्य ने पहले पुतले के कान में तिनका डाला। सब ने देखा कि तिनका सीधा पेट में चला गया, थोड़ी देर बाद पुतले के होंठ हिले और फिर बन्द हो गए। अब चाणक्य ने अगला तिनका दूसरे पुतले के कान में डाला। इस बार सब ने देखा कि तिनका दूसरे कान से बाहर आगया और पुतला ज्यों का त्यों रहा। ये देख कर सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि आगे क्या होगा। अब चाणक्य ने तिनका तीसरे पुतले के कान में डाला। सब ने देखा कि तिनका पुतले के मुँह से बाहर आगया है और पुतले का मुँह एक दम खुल गया। पुतला बराबर हिल रहा है जैसे कुछ कहना चाहता हो।

चन्द्रगुप्त के पूछ्ने पर कि ये सब क्या है और इन पुतलों का मूल्य अलग अलग क्यों है, चाणक्य ने उत्तर दिया।

राजन, चरित्रवान सदा सुनी सुनाई बातों को अपने तक ही रखते हैं और उनकी पुष्टी करने के बाद ही अपना मुँह खोलते हैं। यही उनकी महानता है। पहले पुतले से हमें यही ज्ञान मिलता है और यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य एक लाख मोहरें है।

कुछ लोग सदा अपने में ही मग्न रहते हैं। हर बात को अनसुना कर देते हैं। उन्हें अपनी वाह-वाह की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे लोग कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाते। दूसरे पुतले से हमें यही ज्ञान मिलता है और यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य एक हज़ार मोहरें है।

कुछ लोग कान के कच्चे और पेट के हलके होते हैं। कोई भी बात सुनी नहीं कि सारी दुनिया में शोर मचा दिया। इन्हें झूठ सच का कोई ज्ञान नहीं, बस मुँह खोलने से मतलब है। यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य केवल एक मोहर है।



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