World Languages, asked by vishaln3717, 1 year ago

Apne jiwan ke laksh ke bbare mein batate huai dada ji ko patra

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Answered by aditisingh2442
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Answer:

hello user...

here's your answer...

Explanation:

१२५ ,विकासनगर ,

नयी दिल्ली - ७५

दिनाँक - ________

परम पूज्य दादाजी ,

सादर चरणस्पर्श।

आपका पत्र प्राप्त हुआ तथा समाचार अवगत हुए।आपने अचानक मेरे जीवन के लक्ष्य के बारे में पूछ कर मुझे चौकने पर विवश कर दिया।

यह सच कि संसार में सबके जीवन का कोई न कोई लक्ष्य होता ही है।विरले ही होते है जिनका जीवन निरुद्देश्य तथा निर्लक्ष्य होता है। यदि अपने मन की बात कहूं तो न मैं इनजियर बनना चाहता हूँ और न डॉक्टर।मैं एक देश भक्ति सैनिक बनना चाहता हूँ तथा भारतमाता की सेवा में आत्म -बलिदान तक के लिए प्रस्तुत रहना चाहता हूँ।

हो सकता है , आपको तथा माताजी को मेरा लक्ष्य न आये ,क्योंकि एक सैनिक की जिंदगी संगीन की नोंक पर टिकी रहती है।उसके सिर पर कच्चे धागे में बँधी तलवार लटकी रहती है। कौन जाने ,कब युध्य के बादल मँडराते तथा घहराने लगे।कब किसी अपरिचित शत्रु के स्टेनगन की गोलियाँ छाती को छलनी कर दें।किन्तु यह भी तो सोचना पड़ेगा कि हर सैनिक किसी माता -पिता की संतान होता है।यदि हर -पिता अपने पुत्र के अतिशय लगाव में उलझ जाएँ तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाय।भला वह धरती भुलाने के योग्य है , जिस पर हम पैदा हुए है ,पले है ,बढ़े हैं तथा उत्तरदायित्व की शिक्षा पायी है।ऐसे देश से कभी कोई उऋण नहीं हो सकता। एक सैनिक का जीवन सुख दर्द की कहानी होने के बावजूद अपार आनंद का जीवन है। देश की पुकार पर ,सर पर कफ़न बाँधकर चलने तथा आत्मबलिदान में जो आनंद है , वह स्वरगोमय सुखों में भी नहीं है। मैंने अपने जीवन का मूलमंत्र निम्नलिखित पंक्तियाँ में पा लिया है -

"शहीदों की मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पै मरनेवालों का यही बाकी निशा होगा। "

मैंने मन की बात आप पर व्यक्त कर दी है।आप मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं अपने लक्ष्य से विचलित न होने पाऊँ। माता जी प्रणाम तथा आशीष को बहुत प्यार।

आपका आज्ञाकारी पुत्र

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