Hindi, asked by snejas31, 11 months ago

Apne Kisi Rochak yatra ka varnan Apne shabdo Mein likhiye Hindi mai​

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Answered by jayathakur3939
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रोचक यात्रा का विवरण

यात्रा निश्चय ही मनुष्य को आनन्द प्रदान करती है तथा ज्ञानार्जन करने का साधन भी बनती है। क्योंकि यात्रा करते हुए वह सभी कुछ अपनी आंखों से देखता है। प्राकृतिक दृश्य मन को लुभाते हैं, नये स्थान, अपरिचित लोग, बदले हुए वातावरण से उसे प्रसन्नता मिलती है। प्राचीन काल में हमारे देश में तपस्वी लोग कभी भी किसी एक ही स्थान पर अधिक समय के लिए नहीं ठहरते थे। क्योंकि उनका विचार था कि इससे मनुष्य का ज्ञान ही सीमित नहीं होता अपितु वह गतिहीन और शून्य के समान हो जाता है। हमारे विद्यालय जो प्रधानाचार्य हैं वो बच्चों के साथ भ्रमण करने के लिए सदैव इच्छुक रहते हैं तथा अनेक अवसरों पर वे छात्रों को अनेक स्थानों की यात्रा करवा चुके हैं।  

पिछले महीने चार दिन की छुट्टियों में हमारे प्रधानाचार्य जी ने एक पर्वतीय स्थल की यात्रा का कार्यक्रम बनाया और विद्यार्थियों से इसके लिए स्थानों के नाम पूछे और हमने कई पर्वतीय स्थलों के नाम जैसे-मंसूरी, नैनीताल, शिमला, धर्मशाला आदि के नाम सुझाए। पर इन स्थानों के भ्रमण करने में यह प्रमुख कठिनाई थी कि हमारे विद्यालय में चार दिन का अवकाश था और इन स्थानों की यात्रा में ज्यादा समय चाहिए था। अन्त में सभी ने मिलकर यह निर्णय किया कि इस बार वैष्णो देवी की यात्रा की जाए। हमारे दल में तीस लड़के और 6 लड़कियां थी। निश्चित दिन हम सब रेल्वे स्टेशन पहुंचे और समय पर गाड़ी प्लेट फार्म पर पहुंची। हमने देखा कि जालन्धर स्टेशन पर ही लगभग चार-पाँच सौ लोग वैष्णो देवी की यात्रा के लिए जा रहे थे क्योंकि गाड़ी के चलने के समय ‘जय माता दी’ ध्वनि गूंजने लगी।  

रात को गाड़ी दो बजे जालन्धर से चल पड़ी। आधी रात को हम जम्मू पहुंचे और वहीं पर रुकने का निर्णय लिया गया। अत: हम सभी रघुनाथ मन्दिर के पास की एक सराय में रुके जिसमें सभी प्रकार की व्यवस्था थी। यहां पर पहुंच कर सब ने स्नान किया और और रघुनाध मन्दिर में दर्शन के लिए चल पड़े। इस मन्दिर में बहुत ही भव्य मूर्तियां रखी हैं तथा कहते हैं कि वहां 84 लाख के लगभग देवताओं के प्रतीक बनाए हुए हैं। रघुनाथ मन्दिर में बहुत भीड़ थी। रघुनाथ मंदिर के बाद हम जम्मू के बाजार में घूमने के लिए निकल पड़े। यहां हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बाजार में कहीं चढ़ाई है कहीं ढलान। ऊपर चढ़ते और नीचे उतरते हम बाजार में घूमते रहे और इस प्रकार यह दिन हमने जम्मू में बिताया। दूसरे दिन हम सुबह के समय बस के द्वारा कटरे के लिए तैयार हो गए। जम्मू से कटरा जाने वाले यात्रियों की बहुत अधिक भीड़ थी। हमें एक घण्टे तक बस स्टैंड पर खड़े होने के बाद बस मिली। कुछ ही समय पश्चात् बस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार मार्ग पर चलने लगी। बस में बैठे हुए भी हम दूर-दूर फैली पर्वत श्रेणियों को देख रहे थे। कभी-कभी कोई भक्त माता की जयकार करता और फिर सभी लोग उसके साथ बोल पड़ते। ठण्डी-2 हवा के झोंके हमें प्रसन्न कर रहे थे। इस प्रकार पहाड़ी मार्ग के द्वारा यात्रा करते हुए हम 10 बजे दिन में कटरा पहुंचे। कटरा में यात्रियों की बहुत अधिक भीड़ थी। यहां हमने एक धर्मशाला में कमरे लिए। कुछ समय बाद हममें से कुछ लोगों ने वैष्णो देवी के मंदिर में जाने के लिए जो टिकट कटरा में मिल रहे थे वे टिकट प्राप्त किए। लगभग सात बजे सायं को हमने वैष्णो देवी के लिए पैदल मार्ग की यात्रा आरम्भ की। कटरा से थोड़ी दूर पर आगे बाण गंगा है, हमने उसमें उतर कर स्नान किया। वैष्णो देवी की कथा से यह नदी जुड़ी हुई है। यहीं से वैष्णो देवी की यात्रा के लिए दो मार्ग हो जाते हैं। लोग आते-जाते अथ माता’ कहकर ही एक-दूसरे का स्वागत करते थे। इस यात्रा में अनेक धर्म और जाति के लोग चल रहे थे। इस मार्ग पर यात्रा कठिन होती है पर सभी साथी आराम से थोड़ी दूर पर बैठकर चलते थे। कटरा के बाद फिर थोड़ी दूर पर धार्मिक स्थान चरण पादुका मिलता है। यहां पर दर्शन कर हम आगे बढ़े। फिर धीरे-धीरे चलते-बढ़ते हम अर्द कुंवारी में पहुंचे। रात्रि के समय यहां चढ़ना बहुत ही सुखद और मनोहारी लगता है। अर्द कुंवारी’ में बहुत बड़ी संख्या में लोग ठहरे हुए थे। यहां पर एक गुफा के मार्ग में निकलना होता है। जिसे गर्भयोनि कहते हैं। यह मार्ग बहुत ही तंग है तथा जब गुफा में प्रवेश करते हैं तो मन एक अजीब भय और कौतूहल से भर जाता है। पेट के बल लेट कर फिर इससे आगे निकलना पड़ता है। यहाँ भी माता की जयकार करते हुए लोग आगे बढ़ते हैं। हम यहाँ पर लगभग दस बजे पहुंचे तथा एक घण्टा यहीं पर रुके। पर हमने निश्चय किया कि हम लोग अपनी यात्रा रात को जारी रखेंगे। अतः यहां पर हमने रात्रि का भोजन किया। ‘अर्द कुंवारी’ पर लगभग आधी यात्रा हो जाती है। रात्रि में यहाँ से कटड़ा की ओर देखने पर अत्यन्त मोहक प्रकाश नज़र आता है। इस मार्ग पर बढ़ते हुए हमें अत्यन्त आनन्द आ रहा था। क्योंकि यह मार्ग चीड़ और देवदार के जंगल के बीच से होकर गुज़रता है, अतः यहाँ की यात्रा अत्यन्त रोमांचकारी थी। हमारे प्रधानाचार्य साहब ने हमें माता के भजन भी सुनाए। चढ़ाई चढ़ते हुए कठिनाई और थकान तो अवश्य होती है परन्तु आनन्द भी बहुत मिलता है। अर्द्धक्वारी के बाद ‘हाथी मत्था’ नामक स्थान आता है। इस स्थान पर बैठकर हमने विश्राम किया।  

मेरी यह यात्रा एक बहुत ही सुंदर और शांत एहसास दे गयी और मैंने इस यात्रा का मन की गहराइयों से आनंद लिया और घर आकार यात्रा का वृतांत सबको सुनाया।  

Answered by pc5581768
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