Apne liye jina aur dusro ke liye jine mei kya antar hai
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अपने लिए जीना और दूसरों के लिए जीने में अंतर
अपने लिए जीने और दूसरों के लिए जीने में बहुत अंतर होता है लेकिन इस कलयुग में कुछ ही विरले लोग हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं वरना सभी को अपनी ही चिंता रहती है दूसरों के बारे में कौन सोचता है । मैं मानता हूँ कि अगर हम दूसरों के लिए भी कभी जी कर देखें तो सच में, ज़िंदग्री का असल सुख प्राप्त होगा। आज इस कोरोना महामारी ने सारी दुनिया को झखझोर दिया है और हम सब चिंता में हैं कि हमें या हमारे किसी अपने को यह बीमारी न हो जाए लेकिन क्या हमने सोचा है कि इस समय गरीब और जरूरतमन्द परिवार किस मुश्किल का सामना कर रहे हैं। हम तो आराम से घर बैठे परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं लेकिन वो लोग जो दिहाड़ी मजदूर हैं, वो तो एक वक़्त कि रोटी के लिए भी तड़प रहें हैं। कुछ लोग और संस्थाएं है जो उनकी मदद कर रही हैं और अपना सोचे बिना दिन-रात उनकी मदद में लगे हुए हैं और इसीलिए जिंदगी का असली मतलब वो जानते हैं। अपना ही सोच कर क्या हासिल होगा लेकिन हम दूसरों के बारे में सोचेंगे तो आत्मिक शांति जरूर मिलेगी। अपनी चिंता में हम ठीक से सो भी नहीं पाते, लेकिन किसी ज़रूरतमन्द की मदद करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और जिंदगी जीने का मकसद भी समझ आ जाएगा। एक दिन सब ने इस संसार रूपी पिंजरे को छोड़ कर चले जाना है लेकिन अगर हम यह जीवन दूसरों के लिए समर्पित करना सीख लें तो शायद हमारा जीवन सफल हो जाए। हम कभी यह न सोचें कि दूसरों की मदद से हमें क्या हासिल होगा क्योंकि अगर ऐसा सोचेंगे तो हम कभी भी परोपकार के रास्ते पर नहीं चल सकते। गीता में भी लिखा है कि "कर्म करते चलो लेकिन फल की इच्छा मत करो" जिसका अर्थ स्पष्ट है कि हमें तो बस परोपकार करते रहना है इसके बदले में हमें कुछ मिले या न मिले, इसके बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है हो सकता है दूसरों की मदद करके हमें समाज के कई लोगों का तिरस्कार भी मिले लेकिन हमें परोपकार के पथ से हटना नहीं है क्योंकि परोपकार ही जीवन सफल बनाए की एकमात्र सीड़ी है।