Hindi, asked by meera50, 11 months ago

apne liye jiye toh kya jiye pr nibandh

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Answered by manya222
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***** अपने लिए जीया तोह क्या जीया********
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निःस्वार्थ सेवा का अर्थ है- बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करना, इसी को परोपकार कहा जाता है। ’परोपकार’ शब्द की रचना ’पर’ ़ ’उपकार’ से हुई है। ’पर’ का अर्थ है दूसरे तथा ’उपकार’ का अर्थ है भलाई। अतः ’परोपकार’ का अर्थ है – दूसरों की भलाई। परोपकार में स्वार्थ भावना नहीं होती है। दूसरों की निःस्वार्थ सेवा ही परोपकारा अथवा परमार्थ की श्रेणी में आती है। स्वार्थनिहित कार्य अथवा सहयोग को परोपकार नहीं कहा जा सकता। प्रकृति के कण-कण में परोपकार भावना व्याप्त है। सूर्य, चंद्र तथा वायु निःस्वार्थ भावना से संसार को सेवा मंे सतत् हैं। धरती, नदियाँ, समुंद्र तथा वृक्ष क्या कोई शुल्क लेते है? नदियाँ अपना जल कभी नहीं पीती यद्यपि अनंत जलराशि समेट वे सारा जीवन अनवरत प्रवाहित होती हैं। वृक्ष अपने फल स्वंय नहीं खाते। आंधी और तुफान सहकर भी वे दूसरों को आश्रय देते हैं। बादल युग-युगान्तर से जल लाकर पृथ्वी के अंचल का सिंचन करते हैं परन्तु प्रतिदान अथवा प्रत्युपकर में कभी कुछ नहीं मांगते। प्रकृति परहित के लिए निंरतर अपना सर्वस्व अर्पित करती रहती है।भारतीय संस्कृति मानव मात्र की कल्याण भावना से ओतप्रोत है। ’बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय’ भारतीय संस्कृति के आधार रहे हैं तथा विश्व कल्याण और उसकी भावना इस प्रकार व्यक्त की गई है|
Answered by Anonymous
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Explanation:

अपने लिए जिये तो क्या जिये ।

□ आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि मनुष्य वहीं जो मनुष्य के लिए जिये ।

यानी जो मनुष्य खुद के लिए नही बल्कि दूसरों के लिए जिये वहीं मनुष्य कहलाने का असली हकदार होता हैं । अन्यथा वे पशु के समान होते हैं ।

□ अपना क्या हैं अपने लिए तो पशु भी जी लेते हैं जिनके हाथ भी नहीं होते । अगर ऐसे ही पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान कहलाए जाने वाले मनुष्य भी ऐसा करने लगे तो दोनों में भेद कर पाना मुश्किल हो जाएगा । जो मानव जाति को शर्मनाक करने के लिए काफी हैं ।

□ इस कथन को और स्पष्ट करने के लिए आइये हम एक उदाहरण के माध्यम से हम इसे समझते हैं ।

परिवार

किसी भी परिवार में माता और पिता मुख्य होते हैं । जो स्वावलंबी ( अपने पैरों पर खड़ा होना ) होते हैं । और वही आपका ध्यान जैसे पढ़ाना , लिखना आपका हर प्रकार की जरूरतों को पूरा करना , किसी भी चीज की कमी ना होने देना आदि भली - भाँति करते हैं अगर वहीं खुद के बारे में सोचने व जीने लगे तो हर वह बच्चे का क्या होगा जो आत्मनिर्भर नहीं होता । सोचने में अजीब सा लगता हैं मगर ऐसा नहीं हैं । इस प्रकार हमें खुद के लिए नही बल्कि अन्य के लिए जीना चाहिए , ऐसा उदाहरण हमें अपने परिवार में ही देखने को मिलता है ।

शिक्षक

□ जैसे एक शिक्षक खुद शिक्षित हो कर अन्य को शिक्षित कर देता हैं । अगर वह अपने लिए जीना शुरू कर दें तो अन्य छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा । जिससे देश का भविष्य खतरे की ओर अग्रसर होगा ।

□ इतिहास भी अब तक यही बताता हैं खुद के लिए जीने वाले पशु व दूसरों के लिए जीने वाले महान बनें ।

□ किन्तु आजकल के लोग स्वार्थी हो गए हैं । अब उन्हें दूसरों की कोई परवाह नहीं हैं । अगर सभी मनुष्य ऐसे ही जीने लगे तो इस संसार में मानवता व दया नाम की कोई चीज़ नहीं रह जाएगी । हाँ , हम कुछ अन्य लोगों को दूसरों की सहायता करते देखा होगा । असल में वही मनुष्य कहलाने के असली हकदार हैं ।

निष्कर्ष□

उपयुक्त कथन का निष्कर्ष यही निकलता है जिंदगी मिली हैं तो दूसरों की सहायता करों , उन्हें खुश रखो , जहाँ तक हो सकें किसी को भूखा न रहने दों , उनकी इच्छाओं की पूर्ति तन और मन लगाकर करों । जीने का सबसे बड़ा सुख यही हैं ।

अंत में

प्राणी वहीं जो प्राणियों के लिए जिये

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