Hindi, asked by mahive1, 1 year ago

Apne parivaar ke kisi aise sadasya ka vardan kijiye jisne aapko prabhavit kiya ho. Bataiye ki us vyakti ke prabhav ne aapke jeevan KO Kis prakar parivartit kiya. Aapke gudon KO nikharne me or avgudon KO door karne me us vyakti ne Aapki Kis prakar sahayata ki... Please ispe 2 pages ka prastav likhna hai hindi me...... And plzzz don't copy it from Internet... Give answer in your words..... And please don't write stupid things if u don't know then plzz no need to answer

Answers

Answered by halamadrid
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■■ मेरी जिंदगी में सबसे ज्यादा किसने मुझे प्रभावित किया हैं?■■

मेरी दीदी ने मेरी जिंदगी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।उन्होंने हमेशा मेरी बहुत मदद की और उनसे मैं बहुत प्रभावित हुई हूँ।

मेरी दीदी ने मुझे अच्छे काम करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने मुझे मेहनत, इमानदारी, अनुशासन और धैर्य से काम करना सिखाया है।मेरी दीदी ने मुझे समय नियोजन सीखाया, उनकी सीख से मुझे मेरे काम में बहुत मदद मिली है।

मेरी दीदी की वजह से मैं बुरी संगति से दूर हो गई हूँ। उन्होंने हमेशा मुझे आलस, झूठ, लालच और ईर्ष्या से दूर रहने में मदद की है। उन्होंने मुझे गलत काम करने से रोका है।

मेरी दीदी की वजह से ही, मैंने आज अपने काम में सफलता पाई है।

Answered by tasbiatahseen184
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Answer:

my dear friend I don't think it would be completed in only 2 pages I am giving you a prastav lekhan it's a little big and it's from my old school when I was in 10th

Explanation:

परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है और माता उसकी प्रथम गुरु होती है। वह जिस प्रकार से बालक को पोषित व पुष्पित करती है वह उसी रूप में विकसित होकर समाज के समक्ष आता है। मेरे जीवन में भी मेरी माता की अहम् भूमिका है। पिता व्यापारी होने के कारण अधिक व्यस्त रहते थे। परिवार के अन्य लोगों से भी मेरी अधिक समीपता नहीं थी, परन्तु मेरी माता मेरे साथ परछाई की तरह रहती थीं। अतः मैं उनके आचरण से ही बहुत प्रभावित हुआ। प्रात:काल जल्दी उठना, ईश्वर वन्दना, परिवार के बड़े लोगों को प्रणाम करना, पुनः अपनी नियमित दिनचर्या का पालन करना मुझे मेरी माता ने सिखाया। प्रत्येक कार्य समय पर और तरीके से करना चाहिए तभी पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। ऐसा मेरी माँ कहती थीं। जीवन में सदैव सच्चाई व ईमानदारी का पालन करना मैंने अपनी माँ से ही सीखा। असहाय, दीन-दु:खी जन की सहायता व सेवा करना मैंने अपनी माँ से सीखा। अपनी माता को प्रात:काल से रात तक निरन्तर परिश्रम करते देख मुझमें । परिश्रमी बनने की भावना का विकास हुआ। किसी भी कार्य को पूरी ईमानदारी, लगन और परिश्रम से करता हूँ। मानव मात्र का सम्मान करने की भावना मुझमें माँ से आई। इसीलिए आज मैं सबके सम्मान का पात्र हूँ। मुझे याद है मेरी माँ कहा करती थी बेटा जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। मेरी माता ने सदैव ईश्वर में आस्था रखने की शिक्षा दी। मैं प्रतिदिन विद्यालय जाने से पूर्व देवालय में पूर्ण श्रद्धा से ईश्वर के समक्ष अपना मस्तक झुकाता हूँ। मेरी माता की शिक्षा का ही परिणाम है कि मैं अपना प्रत्येक कार्य समय से करता हूँ। अत: मेरा कोई कार्य अधूरा नहीं रहता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है। यह मंत्र मुझे मेरी माता ने दिया, फलस्वरूप मैं नियमित व्यायाम करके स्वयं को स्वस्थ रखता हूँ। समय से प्रात:काल जागना और समय पर रात को सोना जीवन को सफल बनाता है। इससे आप सदैव स्फूर्तियुक्त रहते हैं। यही कारण है कि मुझमें आलस्य लेशमात्र भी नहीं है। अन्त में मैं यही कहूँगा कि मेरी माता गुणों की खान हैं और वे सारे गुण उसने मुझमें उड़ेल कर मेरा हित किया है ताकि मैं एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभर कर सामने आऊँ और जीवन के किसी भी मोड़ पर किसी भी संकट का सामना साहस से कर सकूँ।

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