apni kalpana ki udaan bharte hue batae ki agar zindagi mein aapko kisi pashu yah pakshi ke liye kuch karne ka mauka mile toh kya karenge
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to hum uske liye jitna kar skate hai Karen's,jaise agar usko chot lagi ho to usko doctor ke pass le ja sakte his.
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अगर मुझे पशु पक्षियों के लिए कुछ करने का मौका मिले तो मैं उनकी सेवा के कार्यो में हाथ बटाऊंगा।
इंसान के रूप में हम अपने लिए सारे प्रबन्ध कर ही लिया करते हैं, सहज न सही तो लड़-झगड़ कर भी।लेकिन बेचारे पशु-पक्षी कहाँ जाएँ, वे तो हमारे ही भरोसे हैं।
हम इन दिनों रोजाना जमकर भोज उड़ा रहे हैं, शीतल जल और दूसरे कई किस्मों के ठण्डे पेय-शरबत, कुल्फी और आईसक्रीम से गले तर कर रहे हैं, लेकिन हमें अपने आस-पास रहने वाले पशु-पक्षियों की कितनी चिंता है।
यह सब निर्भर करता है हमारी संवेदनशीलता पर। हालांकि अब हममें जिस तत्व की कमी है वह संवेदनशीलता ही है, जो न कहीं मोल मिलती है, न किसी में ट्रांसफर की जा सकती है।यह आत्मा की बात है, मन होना चाहिए औरों के लिए जीने का।
हम सभी में उतनी तो संवेदनशीलता होनी ही चाहिए कि पशु-पक्षियों को दाना-पानी की कहीं कोई समस्या नहीं आए।
कहीं किसी भी स्थान पर दाना-पानी के अभाव में यदि कोई पशु या पक्षी तड़पता है, भीषण गर्मी का शिकार होकर भूख और प्यास से दम तोड़ देता है तो यह सारा पाप और दोष हमारे माथे पर ही है।
सेवा, परोपकार और पुण्य का सबसे सहज, सरल और रोजमर्रा के लिए उपयोगी कोई प्रयोग है तो वह यही है कि पशु-पक्षियों के लिए भूख और प्यास मिटाने का काम करें।
यह अपने आप में ऎसा प्रयोग है जिसमें बहुत थोड़े परिश्रम से विराट पुण्य और असीम आत्मतोष पाया जा सकता है। और वह भी घर बैठे ही।
ईश्वर इन्हीं के माध्यम से हमें पुण्य देता है, और कोई माध्यम है ही नहीं।जो जहाँ है, वहाँ अपने सामथ्र्य के अनुसार पशु-पक्षियों के लिए कुछ न कुछ करे।
आशा करता हूँ यह उत्तर आपकी मदद करेगा।
इंसान के रूप में हम अपने लिए सारे प्रबन्ध कर ही लिया करते हैं, सहज न सही तो लड़-झगड़ कर भी।लेकिन बेचारे पशु-पक्षी कहाँ जाएँ, वे तो हमारे ही भरोसे हैं।
हम इन दिनों रोजाना जमकर भोज उड़ा रहे हैं, शीतल जल और दूसरे कई किस्मों के ठण्डे पेय-शरबत, कुल्फी और आईसक्रीम से गले तर कर रहे हैं, लेकिन हमें अपने आस-पास रहने वाले पशु-पक्षियों की कितनी चिंता है।
यह सब निर्भर करता है हमारी संवेदनशीलता पर। हालांकि अब हममें जिस तत्व की कमी है वह संवेदनशीलता ही है, जो न कहीं मोल मिलती है, न किसी में ट्रांसफर की जा सकती है।यह आत्मा की बात है, मन होना चाहिए औरों के लिए जीने का।
हम सभी में उतनी तो संवेदनशीलता होनी ही चाहिए कि पशु-पक्षियों को दाना-पानी की कहीं कोई समस्या नहीं आए।
कहीं किसी भी स्थान पर दाना-पानी के अभाव में यदि कोई पशु या पक्षी तड़पता है, भीषण गर्मी का शिकार होकर भूख और प्यास से दम तोड़ देता है तो यह सारा पाप और दोष हमारे माथे पर ही है।
सेवा, परोपकार और पुण्य का सबसे सहज, सरल और रोजमर्रा के लिए उपयोगी कोई प्रयोग है तो वह यही है कि पशु-पक्षियों के लिए भूख और प्यास मिटाने का काम करें।
यह अपने आप में ऎसा प्रयोग है जिसमें बहुत थोड़े परिश्रम से विराट पुण्य और असीम आत्मतोष पाया जा सकता है। और वह भी घर बैठे ही।
ईश्वर इन्हीं के माध्यम से हमें पुण्य देता है, और कोई माध्यम है ही नहीं।जो जहाँ है, वहाँ अपने सामथ्र्य के अनुसार पशु-पक्षियों के लिए कुछ न कुछ करे।
आशा करता हूँ यह उत्तर आपकी मदद करेगा।
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